श्रीमद्भागवत के अनुसार जनमेजय का नाग सत्र (नाग यज्ञ) Janmejay ka Nag yagy according to shreemadbhagwat Mahapuran
श्रीमद्भागवत के अनुसार जनमेजय का नाग सत्र (नाग यज्ञ) Janmejay ka Nag yagy according to shreemadbhagwat Mahapuran
जब जनमेजय ने सुना कि तक्षकं ने उनके पिता श्री राजा परीक्षित को डस कर मार दिया है तब उन्हें बड़ा क्रोध हुआ। अब वह ब्राह्मणों के साथ मिलकर विधि पूर्वक सर्पों का अग्नि कुंड में हवन करने लगा क्योंकि उन्होंने यह प्रण कर लिया था कि इस संसार के सारे सर्पों का वह विनाश कर देंगे। उनके राज्य में बड़े बड़े विद्वान सिद्ध ब्रह्मण रहते थे। राजा जन्मेजय ने उनसे नाग यज्ञ करवाने का आग्रह किया। यज्ञ प्रारम्भ हो गया।
जन्मेजय के सर्प सत्र प्रारंभ होते ही बड़े-बड़े महासर्प यज्ञ कुंड में आ आकर गिरने लगे। वे आते और यज्ञ कुंड में जलकर भस्म हो जाते। इस तरह हजारों लाखों सर्प स्वाहा होने लगे। राजा जन्मेजय यज्ञ में स्वयं उपस्थित रहकर सर्पराज तक्षक का इंतजार कर रहे थे। लेकिन तक्षक का कहीं नामोनिशान नहीं था।
राजा जन्मेजय ने यज्ञ पुरोहित और ब्राह्मणों से पूछा, हे गुरुदेव बड़े बड़े सर्प आपके मंत्र के प्रभाव से आकर इस यज्ञ कुंड की अग्नि में स्वाहा हो गये परन्तु मेरे पिता जी का हत्यारा तक्षक अभी तक क्यों नहीं आया। वह किस बिल को पकड़ कर बैठा है। अथवा कोई सिद्ध पुरुष, देवता अथवा दानव उसकी रक्षा कर रहे हैं। वह दुष्ट अभी तक क्यों नहीं आया ?
ब्राह्मणों ने राजा को बताया कि तक्षक अपनी मृत्यु के डर से देवराज इन्द्र की शरण में जा बैठा है। इसलिए वह अभी तक बचा हुआ है। यह सुनकर जन्मेजय राजा ने ऐसे मंत्र का संधान करने को कहा जिससे तक्षक की रक्षा करने वाले इंद्र और तक्षक दोनों यज्ञकुंड में आकर भस्म हो जाएं।
अगले दिन यज्ञ कुंड में अग्नि तेज प्रज्ज्वलित हो रही थी। ब्राह्मणों ने ऐसा मंत्र का संधान किया जिससे आकाश में ही देवराज इन्द्र का रथ रूककर चक्कर खाने लगा। वे रथ और तक्षक के साथ ही यज्ञकुंड की ओर खींचने लगे। यह दृश्य देखकर देखकर देव लोक हाहाकार करने लगा। परन्तु वे विवश थे। जब बात देवगुरु बृहस्पति के कानों में पड़ी तो वे राजा जन्मेजय के पास आए।
गुरु वृहस्पति ने राजा जन्मेजय को समझाते हुए कहा, हे राजन् ! आप यह क्या कर रहे हैं ? इस संसार में विधि का अपना विधान है। सभी जीव अपने कर्मों का ही फल प्राप्त करते हैं। आपने व्यर्थ ही हजारों लाखों जीवों की हत्या करने का पाप ले लिया है। सर्प राज तक्षक तो अमृत पीकर अमर हो गया है। आप विधि के विधान में दखल देना छोड़ दीजिए। गुरु वृहस्पति की बातें सुनकर राजा जन्मेजय नाग यज्ञ को रोकने का आदेश दिया। उन्होंने विधिवत गुरु वृहस्पति की पूजा अर्चना की । इस तरह तक्षक का जीवन बच गया।
दोस्तों ! यह प्रसंग श्रीमद्भागवत पुराण से लिया गया है। इस संसार में जो आया है उसे किसी न किसी विधि से जाना ही है इसलिए विधि के विधान में दखल नहीं कराना चाहिए।
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