कविता क्या है ?, Kavita kya hai,कैसे बनती है कविता, कविता में शब्दों का चयन कैसे किया जाता है ? कविता में विंब किसे कहते हैं? कविता में छंद क्या होता है ? कविता की संरचना और कविता के घटक



 
कविता क्या है? कैसे बनती है कविता?

कविता क्या है ? kavita kya hai, कैसे बनती है कविता, kavita kaise banti hai, कविता में शब्दों का चयन कैसे किया जाता है ? कविता में विंब किसे कहते हैं? कविता में छंद क्या होता है ? कविता की संरचना और कविता के घटक।

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कविता क्या है ?

पंडित विश्वनाथ के अनुसार ( वाक्यं रसात्मकं काव्यं ) रसमय वाक्य ही काव्य है। वहीं पंडित राज जगन्नाथ कहते हैं कि रमणीय अर्थ का प्रतिपादक ( रमणीयार्थ प्रतिपालक: शब्द काव्यम् ) शब्द ही काव्य है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार काव्य का चरम लक्ष्य सर्वभूत को आत्मभूत करके अनुभव कराना है।

कहने का तात्पर्य है कि जीवन के प्रति कवि अनुभूत भावों की सत्य पर रागात्मक अभिव्यक्ति ही काव्य है, जिसके लिए छंद, मात्रा , काव्य गुण, अलंकारादि का औचित्य निर्वाह हो जाता है।

अर्जेंटीना के स्पेनिश लेखक जार्ज लुईस बोर्खेस के अनुसार ' कविता कोने में घात लगाए बैठी है, यह हमारे जीवन में किसी भी क्षण बसंत की तरह आ सकती है।'


कैसे बनती है कविता ?

कविता बनने की कहानी बड़ी पुरानी है। हम बचपन से ही दादी- नानी के द्वारा लोरी के रूप में कविताएं बनते देखें हैं। कविता बचपन से ही हमारे जीवन में ऐसे घुली हुई है कि यह हमें कभी जानी पहचानी लगती है तो कभी अनजानी। वह कौन सी चीज है कविता के बोल में जो दुनिया के बोल से ताल मिलाते के लिए जरूरी है ? जैसे ही हम इन सवालों की ओर मुड़ते हैं, कविता की जानी पहचानी दुनिया अनजानी लगने लगती है। 
कविता के खेत , खलिहान, बाग, बगीचे, चिड़िया, शेर, पानी सूख, गांव, नगर सब अपरिचित से लगने लगते हैं। इस अपरिचित दुनिया में गोते लगाने वाले आलोचक और कवियों को कविता कभी जादू लगती है तो कभी पहेली।

फिर सवाल आ जाता है कि कविता है क्या ? वाचिक परंपरा में जन्मी कविता आज हमारे पास लिखित रूप में मौजूद है। सारी जटिलताओं के बाद भी कविता हमारी संवेदनाओं के निकट है। तभी तो कविता हमारे मन को छूकर हमें झकझोर देती है। यही राग तत्व है जो कविता के जड़ में है। तभी तो यही संवेदना ने डाकू रत्नाकर को महाकवि वाल्मीकि बना दिया।

मा निषाद! प्रतिष्ठा त्वमगम: शाश्वती समा:।
यत्क्रौचं मिथुनादेकमवधी: काममोहितम्।।

महाकवि सुमित्रानंदन पंत ने भी लिखा--

वियोगी होगा पहला कवि
आह से उपजा होगा गान।
उमड़ कर आंखों से चुपचाप
बही होगी कविता अनजान।।


जहां तक कविता लेखन का सवाल है, तो इस संबंध में दो मत हैं - पहला यह कि कविता रचने की कोई प्रणाली सिखाई नहीं जा सकती है लेकिन पश्चिम के देशों में विद्यार्थियों को इसके बारे में बकायदा प्रशिक्षण दिया जाता है। लेकिन यह तो सर्वविदित है कि अच्छी को बार बार पढ़ना चाहिए। आप इसे जितनी बार पढ़ेंगे कविता का रहस्य उतना ही अधिक खुलेगा।

कविता कैसे बनती है ?

कविता बनने के पीछे दो मान्यताएं हैं - पहली कि कविता स्वत: आती है और दूसरी कि चित्र कला, संगीत कला की तरह कविता भी लिखना सीखाई जा सकती है। पश्चिमी देशों में विद्यार्थियों को कविता लिखना सिखाने के लिए विश्वविद्यालय है। विद्वानों का कथन है कि इन संस्थाओं से कविता लिखना सीखें या न सीखें एक सहृदय और भावुक कविता पाठक तो बन ही सकते हैं।

चित्रकला में रंग, कूची, कैनवास तो संगीत में स्वर, ताल, वाद्य आदि की जरूरत पड़ती है, लेकिन कविता ऐसी कला है जिसमें किसी बाहरी उपकरण की मदद नहीं ली जाती । कवि की एक कठिनाई यह भी होती है कि उसे भाषा के उन्हीं उपकरणों से काम लेकर कुछ विशेष रचना होता है जो विषय हमारे दैनिक जीवन का माध्यम है। कवि अपनी इच्छा अनुसार शब्दों को जुटाता है और उसे लय से गठित करता है।

कविता में शब्दों का महत्व, कविता में शब्दों का चयन कैसे किया जाता है ?

कविता की रचना में सबसे पहला उपकरण है शब्द। शब्दों के बिना भला कविता कैसे बन सकती है? इसलिए कविता की रचना में शब्दों की भूमिका महत्वपूर्ण है। कविता लिखने के लिए शब्दों से खेलना शुरू किया जाता है।  इस संबंध में अंग्रेजी कवि डब्ल्यू एच वार्डन की उक्ति विचारणीय है। वे लिखते हैं -- प्ले विथ द वर्ड । वे एक उदाहरण के साथ समझाते हुए कहते हैं - मान लीजिए कि आप बहुत से विद्यार्थियों के साथ कक्षा में बैठे हैं। चुपचाप , अनजानी सी। लेकिन जैसे ही आप खेल के मैदान में पहुंच जाते हैं, आप सभी की आपस में बात चीत होने लगती है।

शब्द सदियों से अपने भीतर अनेक अर्थ छुपाए रखतीं हैं। इन परतों को खोलना ही कविता से खेलना है। बच्चे खेल खेल में कविता रच डालते हैं। जैसे - घो - घो रानी कितना पानी। अथवा

अक्कड़ बक्कड़ बम्बे बो
अस्सी नब्बे पूरे सौ
सौ में लागा धागा
चोर निकलकर भागा।।

कई बार हमारे बड़े कवियों ने भी शब्दों से खेलने का सार्थक प्रयास किया है
 अगर कहीं में तोता होता
 तोता होता तो क्या होता?
 तोता होता 

यह रघुवीर सहाय की कविता है।

ऊपर लिखे गए काव्यांशों में कवि ने शब्दों और ध्वनियों से खेलने का प्रयास किया है। खेल खेल में किए गए इस प्रयास द्वारा अर्थ के नए आयाम खुलते हैं। शब्दों का यह खेल धीरे धीरे एक ऐसी दुनिया में ले जाता है जहां रिदम है, लय है और एक व्यवस्था है । यही प्रवृत्ति आगे चलकर शब्दों को ठीक-ठीक रखकर अर्थ के खेल खेलना सिखा देती है। यानी शब्दों के खेल से शुरू हुई कविता के रचने की कहानी शब्दों की व्यवस्था तक जाती है। उदाहरण के लिए धूमिल की कविता मोतीराम की कुछ पंक्तियां देखा जा सकता है-

चोट जब पेसे पर पडती है
 तो कहीं ना कहीं एक चोर कील
 दबी रह जाती है 
जो मौका पाकर उभरती है
 और अंगुली में गड़ती है।

बिंब और छंद


बिंब और छंद कविता को इंद्रियों से पकड़ने में सहायक होते हैं। हमारे पास दुनिया को जानने का एकमात्र सुलभ साधन इंद्रियां ही हैं। बाह्य संवेदनाएं मन के स्तर पर बिंब के रूप में बदल जाती है। कुछ विशेष शब्दों को सुनकर मन के भीतर कुछ चित्र उभर जाते हैं। यही स्मृति चित्र शब्दों के सहारे बिंब निर्मित करते हैं। एक उदाहरण देखिए--

तट पर बगुलों - ही वृद्धाएं
विधवाएं जप ध्यान में मग्न,
मंथर धारा में बहता
जिनका अदृश्य गति अंतर - रोदन!

कविता के कुछ प्रमुख घटक

कविता के कुछ प्रमुख घटक निम्नलिखित हैं -

1. कविता भाषा में होती है, इसलिए भाषा का सम्यक ज्ञान जरूरी है।
2. भाषा प्रचलित और सहज हो, लेकिन संरचना ऐसी हो कि पाठक को नयी लगे।
3. छंद के अनुशासन की जानकारी भी एक कवि को अवश्य होना चाहिए। चाहे कविता छंद मुक्त ही क्यों न हो ।
4. कविता समय विशेष की उपज होती है। उसका स्वरूप समय के साथ-साथ बदलता रहता है। अतः किसी समय विशेष की प्रचलित प्रवृतियों को ठीक ठीक जानना भी कविता की दुनियां में प्रवेश के लिए जरूरी है।
5. कम से कम शब्दों में अपनी बात कह देना और कभी कभी तो शब्दों या दो वाक्यों के बीच कुछ अनकही छोड़ देना कवि की ताकत बन जाती है। लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि कवि के पास नयी चीजें देखने की नवीन दृष्टि होनी चाहिए और यह सब निरंतर प्रयास से होता है।

 

नाटक कैसे लिखें। नाटक किसे कहते हैं ?

उषा (कविता) (क्लिक करें और पढ़ें)


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