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Chandragupta dwitiya


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भारत के इतिहास में गुप्त काल को स्वर्ण काल माना जाता है। इस काल खंड में शासन व्यवस्था, कला, सभ्यता संस्कृति, साहित्य आदि का भरपूर विकास हुआ। समुद्रगुप्त का पुत्र चंद्रगुप्त द्वितीय बड़ा प्रतापी राजा हुए। इनकी राजधानी उज्जयिनी थी। चंद्रगुप्त द्वितीय का शासन काल 375 से 414 ई माना जाता है। शकों पर विजय के बाद उसने विक्रमादित्य की उपाधि धारण की। उसने गुप्त संवत चलाया। प्रसिद्ध कवि कालिदास उसके दरबारी कवि थे। नाग राजकुमारी कुबेरनागा उसकी पत्नी थी। चंद्रगुप्त द्वितीय की एक मात्र पुत्री का नाम प्रभावती गुप्त था। अपनी शासन व्यवस्था, सुख समृद्धि, एकता, भाईचारे के कारण चंद्रगुप्त द्वितीय इतिहास में अमर हैं।

चंद्रगुप्त द्वितीय का जन्म, पिता, उपाधि

समस्त गुप्त राजाओं में समुद्रगुप्त का पुत्र चंद्रगुप्त द्वितीय सर्वाधिक शौर्य एवं वीरोचित गुणों से संपन्न था। उसने देव, देव गुप्त , देवराज , देव श्री ,श्री विक्रम ,विक्रमादित्य, परम भागवत , नरेंद्र चंद्र ,सिंह विक्रम ,अजीत विक्रम आदि उपाधि धारण किए थे। अनुश्रुतियों में चंद्रगुप्त द्वितीय को शकारि अर्थात शकों के शत्रु की उपाधि दी गई है । चंद्रगुप्त द्वितीय ने अपनी पुत्री प्रभावती का विवाह वाकाटक नरेश रूद्र सेन से किया । रूद्र सेन की मृत्यु के बाद चंद्रगुप्त ने अप्रत्यक्ष रूप से वाकाटक राज्य को अपने राज्य में मिलाकर उज्जैन को अपनी दूसरी राजधानी बनाई । इसी कारण चंद्रगुप्त द्वितीय को उज्जैनपुरवाराजेश्वर भी कहा जाता है । उसकी एक राजधानी पाटलिपुत्र भी थी।  

अतः चंद्रगुप्त द्वितीय को पाटलिपुत्रपुराधिश्वर  भी कहा जाता है। दक्षिण भारत में कुंतल एक प्रभावशाली राज्य था। श्रृगार प्रकाश तथा कुंतलेश्श्वरदौत्यम  से पता चलता है कि चंद्रगुप्त द्वितीय का कुंतल नरेश  से मैत्रीपूर्ण संबंध था। चंद्रगुप्त ने महाकवि कालिदास को अपना राजदूत बनाकर कुंतल नरेश के दरबार में भेजा था।  ताल गुंडा प्रशस्ति से यह ज्ञात होता है कि कुंतल नरेश ककुत्स्थववर्मण ने   अपनी पुत्री का विवाह गुप्त नरेश से किया था। इस वैवाहिक संबंध की पुष्टि क्षेमेंद्र की औचित्र विचार चर्चा से भी होती है।

Chandragupta vikramaditya

चीनी यात्री फाहियान चंद्रगुप्त द्वितीय के समय में भारत आया था । फाहियान की यात्रा का उद्देश्य बौद्ध धर्म के प्रमाणिक ग्रंथों की खोज करना तथा तीर्थ स्थलों को देखना था। वह पश्चिमी चीन, मद्धेशिया, पेशावर के स्थल मार्ग से भारत आया वह ताम्र लिप्ती से सिंगल दीप अर्थात श्रीलंका होते हुए समुद्री मार्ग से वापस लौट गया। वह 3 वर्ष तक पाटलिपुत्र में रहा । अपनी यात्रा के अंतिम चरण में वह लुंबिनी तथा वैशाली गया था। उसने अपनी यात्रा विवरण में लिखा है कि तामलुक, पेशावर, गंधार, तक्षशिला बौद्ध धर्म के प्रमुख केंद्र थे। मध्यकाल में ब्राह्मणों का बोलबाला था। क्रय विक्रय में कौड़ियों का प्रयोग किया जाता था। चांडाल शहर से बाहर रहते थे। देश में परोपकारी संस्थाएं थी। सारीपु, लायन तथा आनंद के सम्मान में स्तूप बने थे । कपिलवस्तु, कुशीनगर व श्रावस्ती की दशा सोचनीय हो गई थी।

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चंद्रगुप्त द्वितीय ( विक्रमादित्य ) के सैनिक अभियान

अपने सैनिक अभियानों के दौरान चंद्रगुप्त की सबसे पहली विजय शक राजा रूद्र सिंह तृतीय पर हुई। इसकी पुष्टि उसके प्राप्त तीन अभिलेखों से होती है ।प्रथम अभिलेख भिलसा के समीप उदयगिरि पहाड़ी से मिला है जो उसके संधि विग्रहिक सचिव वीरसेन का है। दूसरा अभिलेख भी उदयगिरि में मिलता है जो उसके सामंत सनकानिक महाराज का है। तीसरा लेख सांची का है जो उसके एक सैनिक अधिकारी अम्रकादर्व का  है जो सैकड़ों युद्धों का विजेता था । शक विजय के उपलक्ष में चंद्रगुप्त ने विक्रमादित्य की उपाधि धारण की तथा शक विजय के स्मृति में व्याघ्र शैली प्रकार के सिक्के चलाएं । चंद्रगुप्त ने शक मुद्राओं के अनुकरण पर ही चांदी के सिक्के चलाए। शक विजय के परिणाम स्वरुप चंद्रगुप्त का अधिकार मालवा, गुजरात ,सौराष्ट्र एवं काठियावाड़ पर स्थापित हो गया। पश्चिमी तट के प्रमुख बंदरगाह भृगु कच्छ ( भड़च) पर भी उसका अधिकार हो गया।

चन्द्रगुप्त द्वितीय की शासन व्यवस्था

चंद्रगुप्त एक महान विजेता के साथ-साथ एक कुशल शासक भी था उसका प्रथम सचिव वीरसेन था जिसका उल्लेख उदयगिरि महागुहा लेख में मिलता है। सनकानीक महाराजा पूर्वी मालवा प्रदेश का राज्यपाल था। वह अपने आप को चन्द्रगुप्त का पादानुध्यात कहता था।अम्रकादर्व उसका प्रधान सेनापति था।
उपरिक -  प्रांत का राज्यपाल होता था। वहां  (वैशाली ) के प्रांत मोहर से ज्ञात होता है कि गोविंद गुप्त तीरभुक्ति प्रदेश का राज्यपाल था।

कुमारामात्य -- विशिष्ट प्रभार के प्रशासनिक अधिकारी थे।

बलाधिकृत -- यह सेना का विशिष्ट अधिकारी होता था। इसका कार्यालय बलाधिकरण कहलाता था।

रणभाण्डागाराधिकृत -- सैनिकों के सामानों को सुरक्षित रखने वाला अधिकारी। इसका कार्यालय रणभंडाधिकरण था।

दंडपाशिक -- यह पुलिस विभाग का प्रधान अधिकारी था। दण्डपाशाधिकरण इसका कार्यालय था।

महादंडनायक -- ये न्यायधीश होते थे।
विनयस्थितिस्थापक -- इनका कार्य कानून व्यवस्था स्थापित करना था।

भटाश्वपति -- यह सेना का नायक होता था।

महाप्रतिहार -- यह राजमहल का मुख्य सुरक्षा अधिकारी था।

कुमारामात्याधिकरण -- राजकुमार के मंत्री का कार्यालय।

चन्द्रगुप्त द्वितीय के कुछ पदाधिकारियों के नाम  -- वीरेन, शिखर स्वामी, अम्रकादर्व, गोविन्द गुप्त, सनकानिक महाराज,त्रिकालज्ञ, स्वामी दास इत्यादि।

चन्द्रगुप्त द्वितीय के धर्म


चन्द्रगुप्त द्वितीय वैष्णव धर्म के उपासक थे। उनकी परमभागवत उपाधि उसके वैष्णव होने का प्रमाण है। लेकिन चन्द्रगुप्त द्वितीय वैष्णव होने के बावजूद भी धार्मिक सहिष्णुता को अपनाया था। उसका सचिव वीरसेन शैल था। सेनापति अम्रकादर्व बौद्ध धर्म मानते थे। उसने काकनाद वाट बौद्ध विहार में 25 दिनार और ईश्वर वासक ग्राम दान में दिया था।

चंद्रगुप्त द्वितीय का विद्याप्रेम और उनके दरबारी नौ रत्न


चंद्रगुप्त द्वितीय स्वयं विद्वान और विद्वानों का आश्रय दाता था। उसके दरबार में नौ विद्वानों की एक मंडली थी जिसे नौ रत्न कहा जाता है। चंद्रगुप्त द्वितीय के नौ रत्नों के नाम --- कालीदास, धनवंतरी, क्षपणक, अमर सिंह, शंकु, बेतालगृह, घटकपर्व, वाराहमिहिर, और वररूचि।

 पाटलिपुत्र और उज्जैनी विद्या के प्रमुख केंद्र थे। उज्जैनी में काव्य कारों की परीक्षा लेने के लिए एक विद्वतपरिषद थी। इस परिषद में कालीदास, भर्तमेठ, भारशिव, अमरु, हरिश्चंद्र, चंद्रगुप्त आदि कवियों की परीक्षा लेते थे।

चंद्रगुप्त द्वितीय के सिक्के


चंद्रगुप्त द्वितीय के सिक्के निम्नलिखित प्रकार के थे ---
धनुर्धारी प्रकार, छत्र प्रकार, पर्यक प्रकार, सिंहन्ता प्रकार, अश्वरोही प्रकार, राजारानी प्रकार, ध्वजा धारी प्रकार, चक्र विक्रम प्रकार, । इनमें धनुर्धारी प्रकार के सिक्के अधिक मिले हैं।  सभी प्रकार के सिक्के स्वर्ण के हैं। चन्द्रगुप्त द्वितीय ने सर्वप्रथम चांदी के सिक्के चलाए थे। चंद्रगुप्त द्वितीय की मृत्यु के पश्चात उसका पुत्र कुमार गुप्त महेन्द्रादित्य गद्दी पर बैठा।

डॉ उमेश कुमार सिंह हिन्दी में पी-एच.डी हैं और आजकल धनबाद , झारखण्ड में रहकर विभिन्न कक्षाओं के छात्र छात्राओं को मार्गदर्शन करते हैं। You tube channel educational dr Umesh 277, face book, Instagram, khabri app पर भी follow कर मार्गदर्शन ले सकते हैं।




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