तानसेन और राग दीपक की कहानी, अकबर दरबार के नवरत्नों में एक महत्वपूर्ण रत्न तानसेन, तानसेन के गुरु स्वामी हरिदास जी, तानसेन की मौत कैसे हुई, राग दीपक की ज्वाला से तानसेन को किसने बचाया। Tansen aur rag Deepak,
तानसेन और राग दीपक की कहानी, अकबर दरबार के नवरत्नों में एक महत्वपूर्ण रत्न तानसेन, तानसेन के गुरु स्वामी हरिदास जी, तानसेन की मौत कैसे हुई, राग दीपक की ज्वाला से तानसेन को किसने बचाया।
Tansen ke Guru Kaun the, Tansen ke Guru Swami haridas the. Tansen ke bachpan ka nam,
Tansen kish Raja ke darbari the.tansen ka asali nam kya tha.
Tansen aur rag Deepak,
तानसेन का नाम कौन नहीं जानता ? तानसेन अकबर के दरबार के नवरत्नों में एक महान रत्न थे। तानसेन स्वामी हरिदास के शिष्य थे। कहते हैं , तानसेन पांच साल की अवस्था तक गूंगे थे, स्वामी हरिदास जी ने उन्हें गीत संगीत की शिक्षा दी। संगीत की दुनिया में तानसेन ने इतना नाम कमाया कि महान मुगल बादशाह अकबर ने उन्हें अपने दरबार में महत्वपूर्ण रत्न बना दिया। बादशाह अकबर उन्हें बहुत मानते थे। इस बात से अन्य दरबारी तानसेन से जलने लगे। उन्होंने कुछ ऐसा षड्यंत्र रचा कि तानसेन खुद राग दीपक गाकर जल मरे। लेकिन तानसेन ने बुद्धि से इस षड्यंत्र को विफल कर तो दिया, परन्तु ---! पूरी कहानी आगे पढ़े।
तानसेन बादशाह अकबर के बहुत प्रिय दरबारी बन गये थे। इनका असली नाम था तनु पांडे था। तानसेन का जन्म ग्वालियर में हुआ था। बादशाह उनकी बड़ी कद्र करते थे। राजकाज में भी उनकी बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका होती थी। इस बात से अकबर दरबार के अन्य संगीतकार और दरबारी उनसे ईर्ष्या करने लगे। उन्होंने तानसेन को जला कर मार देने का षड्यंत्र रच डाला।
एक दिन दरबारियों ने बादशाह अकबर से यह निवेदन किया कि तानसेन के अलावा कोई दूसरा गायक भली भांति राग दीपक गा ही नहीं सकता है। इसलिए आप तानसेन से राग दीपक गाने को कहें। वे जानते थे कि जो व्यक्ति राग दीपक गाएगा उसके तन में आग लग जाएगी और गाने वाला व्यक्ति स्वयं जल मरेगा। बादशाह ने एक दिन तानसेन को राग दीपक गाने का आदेश दे दिया। तानसेन दरबारियों के षड्यंत्र को भली भांति समझ गये। लेकिन राजाज्ञा के सामने विवश थे। फिर भी उन्होंने बादशाह अकबर से कुछ समय मांग लिया।
राग दीपक ऐसा राग है कि यदि सही तरह इसे गाया जाए तो बुझे हुए दीपक जल उठते थे। परन्तु गाने वाले के शरीर में ऐसा ज्वर उठता कि उसकी ज्वाला से वह जल मरता था। इस बात को तानसेन अच्छी तरह जानते थे।
तानसेन की दो पुत्रियां थीं। उन्होंने दोनों पुत्रियों को राग मेघ मल्हार की शिक्षा देनी शुरू कर दी। राग मेघ मल्हार के गाने से घनघोर वर्षा होने लगती और वातावरण ठंडा हो जाता। जब तानसेन की दोनों पुत्रियां राग मेघ मल्हार गाने में निपुण हो गई तो तानसेन ने उन्हें समझाया कि जब मैं राग दीपक गाऊंगा और दीपक जल उठे तो मेरे शरीर के तपिश को ठंडा करने के लिए तुम लोग राग मेघ मल्हार गाना।
तानसेन दरबार में जाकर राग दीपक गाने लगे। पूरा दरबार खचाखच भरा था। सभी राग दीपक के आनंद में मग्न थे। तभी एकाएक दीपक जल उठा। आग की ज्वाला निकलने लगी। सभी लोग इधर-उधर भागने लगे। तानसेन का शरीर भी तपिश से धधकने लगा। तभी उनकी पुत्रियां राग मेघ मल्हार गाकर आग को बुझा दिया। उस समय तानसेन के शरीर की तपिश भी मिट गयी।
लेकिन तानसेन वृद्ध हो चले थे। 80 वर्ष की अवस्था में उनका शरीर उस ज्वाला को सहन नहीं कर सका और आगे चलकर यही उनकी मृत्यु का कारण बन गया।
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