डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, भारत के प्रथम राष्ट्रपति, जीवन परिचय, Dr.Rajendra Prasad, first president of India , biography
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डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, भारत के प्रथम राष्ट्रपति, जीवन परिचय, Dr.Rajendra Prasad, first president of India , biography
परीक्षार्थी परीक्षक से भी अधिक योग्य है, यह कथन यदि किसी भारतीय नेता के प्रशस्ति में कहे गए हैं तो वे हैं डॉ राजेंद्र प्रसाद। इनका जन्म 03 दिसंबर 1884 ई को बिहार राज्य के छपरा जिलांतर्गत जीरादेई नामक स्थान में हुआ था। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा उर्दू - फारसी के माध्यम से हुई थी। 1902 ई में इन्होंने इंट्रेंस की परीक्षा में कलकत्ता विश्वविद्यालय में सर्वप्रथम स्थान प्राप्त किया था। फिर इन्होंने एफ . ए, बी. ए , एम . ए., एम. एल की उपाधियां प्राप्त की।
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के मन में राजनीति के बीज विद्यार्थी जीवन से ही अंकुरित हो रहे थे। छात्र जीवन में ही इन्होंने कलकत्ता में छात्रों को संगठित करना प्रारंभ कर दिया था। कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में महात्मा गांधी की नजर इन पर पड़। महात्मा गांधी के अचार विचार से ये काफी प्रभावित हुए। महात्मा गांधी के नेतृत्व में जब चंपारण आंदोलन प्रारंभ हुआ , तो राजेंद्र प्रसाद जी खूब बढ़ चढ़कर हिस्सा लिए। पटना के सदाकत आश्रम की स्थापना में इनका भरपूर सहयोग था।
देश में अंग्रेजों के दमन और शोषण से राजेंद्र बाबू काफी व्यथित थे। अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए इन्होंने बिहारी स्वयं सेवको की एक विशाल वाहिनी तैयार की थी। इससे वे अंग्रेजों की आंखों में खटकते थे। इसका परिणाम भी निश्चित था। अन्य नेताओं की तरह इन्हें भी जेल की काल कोठरी में बंद कर दिया गया। परन्तु जेल की काली कोठरी रूपी बादल राजेंद्र बाबू जैसे सूर्य को भला कब तक छुपा सकता है। राजेन्द्र बाबू की प्रतिमा तपकर कुंदन हो गई। राजेन्द्र बाबू संविधान निर्माता सभा के अध्यक्ष बनाए गए। 1946 ई में इन्हें केन्द्रीय मंत्रिमंडल में खाद्य मंत्री का दायित्व सौंपा गया।
डॉ राजेंद्र प्रसाद 1950 ई में स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति बनाए गए। 1950ई से 14 मई 1962 तक इन्होंने भारत के राष्ट्रपति पद को सुशोभित किया। भारत के राष्ट्रपति पद पर रहते हुए भी इन्होंने आमजन से अपने आप को पृथक नहीं किया। इन्होंने राष्ट्रपति भवन का दरवाजा सबके लिए खोल रखा था। ये महात्मा गांधी के सच्चे अनुयाई थे। उस समय राष्ट्रपति का वेतन दस हजार रुपए मासिक था। राजेन्द्र बाबू ने स्वेच्छा से इसे घटाकर ढाई हजार कर दिया था।
राजेन्द्र बाबू का कहना था कि एक गरीब राष्ट्र के राष्ट्रपति को इतना अधिक वेतन लेना मुनासिब नहीं है। प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद के नेतृत्व में भारत प्रगति के पथ पर अग्रसर हो गया।
डॉ राजेंद्र प्रसाद अपने जीवन के अंतिम समय में सदाकत आश्रम, पटना में रहने लगे थे। 28 फरवरी 1963 ई को सदाकत आश्रम में ही इन्होंने जीवन की अंतिम सांसें लीं। राजेन्द्र बाबू चले गए किन्तु उनका जीवन संदेश हमेशा देशवासियों को प्रेरित करता रहेगा।
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