जल में कुंभ कुंभ में जल है, कबीर के विचार, आत्मा परमात्मा के प्रति, jal me kumbh hai

Jalme kumbh hai

 

जल में कुंभ कुंभ में जल है, बाहर भीतर पानी। 

फूटे कुंभ जल जलहि समाना यह तथ्य कथ्यो ज्ञानी।।

जल - पानी।
कुंभ - घड़ा।
समाना - समाहित होना।
तथ्य - गूढ़ बात।
कथ्यो - कहते हैं।
ज्ञानी - विद्वान।

कबीर दास जी एकेश्वरवादी कवि हैं। वे कहते हैं - जिस प्रकार कोई  मिट्टी का घड़ा नदी के सतह पर तैर रहा हो, और उसके अंदर जल हो। और नदी में भी जल है जिस पर पानी से भरा घड़ा तैर रहा है। दोनों ओर जल है। तो यहां दोनों तरफ के जल को मिलने से, एक होने से कौन रोक रहा है। वही मिट्टी की पतली दीवार। ज्योंहि यह पतली दीवार टूट जाती है, दोनों जल मिलकर एक हो जाते हैं। 


मित्रों ! इस प्रकार  शरीर और आत्मा के साथ भी यही होता है। जब तक शरीर रूपी घट में आत्मा कैद है, तब तक वह विभिन्न नामों से जाना पहचाना जाता है । लेकिन जैसे ही आत्मा इस शरीर रूपी घट से निकल जाता है, वह परमात्मा में विलीन हो जाता है। फिर उसकी अलग पहचान नहीं रह जाती। आत्मा परमात्मा में पूर्णतया विलीन हो जाता है।

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