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Kuchh Kam kro


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प्रिय पाठकों ! मैथिलीशरण गुप्त जी द्वारा रचित" कुछ काम करो "कविता बहुत पुरानी कविता है। हमारे शिक्षक , माता पिता इसे सुनाकर हमारे मन को उत्साहित करते थे। और आज भी यह कविता पढ़कर हमारा मन उत्साह से भर उठता है। यहां वही कविता' कुछ काम करो 'की पंक्तियां, भावार्थ और प्रश्न उत्तर के साथ आपके स्मृति को तरोताजा करने के लिए दिया गया है।

नर हो न निराश करो  मन को।
कुछ काम करो कुछ काम करो।
जग में रहकर कुछ नाम करो।
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो।
कुछ तो उपयुक्त करो तन को
नर हो न निराश करो मन को।
कुछ काम करो कुछ काम करो
जग में रहकर कुछ नाम करो।।


संभालो कि सुयोग न जाए चला,
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला।
समझो जग को न निरा सपना
 पथ आप प्रशस्त करो अपना ।
अखिलेश्वर है अवलंबन को।
नर हो न निराश करो मन को।।


निज गौरव का नित ध्यान रहे
हम भी कुछ हैं,यह ध्यान रहे।
सब जाय अभी पर मान रहे,
मरने पर गुंजित गान रहे।
कुछ हो , न  तजो निज साधन को,
नर हो, न निराश करो मन को।।


प्रभु ने तुमको कर दान किए।
सब वांछित वस्तु विधान किये,
तुम प्राप्त करो उनको न कहो,
फिर है किसका यह दोष कहो।
समझो न अलभ्य किसी धन को।
नर हो न निराश करो मन को।


किस गौरव के तुम योग्य नहीं?
कब कौन तुम्हें सुख भोग्य नहीं ?
जन हो तुम भी जगदीश्वर के।
सब हैं जिसके अपने घर के।
फिर दुर्लभ क्या उसके जन को?
नर हो न निराश करो मन को।।

करके विधि वाद न खेद करो
निज लक्ष्य निरंतर भेद क्यों
बनता बस उद्यम ही विधि है
मिलती जिससे सुख की निधि है।
समझो धिक् निष्क्रिय जीवन को,
नर हो न निराश करो मन को।।

 शब्दार्थ, कठिन शब्दों के अर्थ 

इसे भी पढ़ें 

नर  -मनुष्य, व्यर्थ - बेकार, प्रशस्त - अच्छा, उत्तम,अलभ्य -जो प्राप्त न हो। जगदीश्वर -- भगवान, भोग्य -- भोगने योग्य।कर - हाथ।

कुछ काम करो कविता का भावार्थ 


राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी कहते हैं -- आपका जन्म मनुष्य में हुआ है। आप नर हैं, निराश मत हो। काम करो, कुछ भी करो। संसार में नाम करो। आप के जन्म का कुछ उद्देश्य है, इसे साकार करो। देखो, आप के जन्म का उद्देश्य विफल न हो जाए। काम करो और मानव जीवन को सफल बनाओ।
यह सुंदर संयोग है। काम शुरू करो, सफलता अवश्य मिलेगी।अपने मेहनत से अपने रास्ते को सुंदर और चमकदार बनाओ।
एक बात और है, अपने गौरवशाली इतिहास का हमेशा ध्यान रखना। हम भी कुछ हैं, इसका भी ख्याल रखना। अपने मान सम्मान से कभी समझौता नहीं करना।




देखो, भगवान ने तुम्हें कितना सुन्दर शरीर प्रदान किया है। सुन्दर सुन्दर दो हाथें दी है। सभी सामग्री प्रदान की हैं। अपना जीवन उत्तम बनाओं। ईश्वर तुम्हारे साथ हैं।

देखो, संसार की सारी वस्तुएं तुम्हारे लिए है। सभी माननीय पद तुम्हारे लिए है। बस प्रयास करो और उसे पा लो। कोशिश करने वाले के साथ भगवान भी होते हैं। थको नहीं , हार न मानो, आगे बढ़ कर सफलता की सीढ़ियां चढ़ो।

भाग्य वाली न बनो मित्रों! भाग्य में यही लिखा है, ऐसा कहकर हार मान लेना ठीक नहीं है। मेहनत ही सफलता की कुंजी है। प्रति दिन अपने लक्ष्य की एक एक सीढ़ियां चढ़ो। अरे भाई ! निष्क्रिय जीवन भी कोई जीवन है। निराश न हों, काम करें।

1.मनुष्य होने के कारण निराश नहीं होना चाहिए । क्यों ?

उत्तर - हम मनुष्य हैं। भगवान ने हमें सभी जीवों से सुन्दर बनाया है। हमें काम करने के लिए दो सुन्दर हाथ दिए हैं। हमारे पास बुद्धि है। मेहनत करके हम अपना जीवन सुखमय बना सकते हैं।

2. मनुष्य का जन्म सार्थक कैसे होगा ?

उत्तर - मेहनत करके मनुष्य का जन्म सार्थक हो सकता है।

3. सुयोग पाकर क्या किया जाए ?

उत्तर -- सुयोग का सदुपयोग करना चाहिए। उसे सफलता में बदल देना चाहिए।

4. मनुष्य का सहारा क्या है ?

उत्तर - मेहनत ही मनुष्य का सहारा है।

5. मरने पर गुंजित गान रहे का क्या भाव है ?

उत्तर - मरने पर गुंजित गान रहे का भाव है कि हमें ऐसा काम करना चाहिए जिससे लोग मरने पर भी हमारी कृति को युगों युगों तक याद करें।

यह कविता कैसा लगा , कामेंट बाक्स में लिखें,जरूर लिखें ।

यह भी पढ़ें) बसंत  ऋतु निबंध

 लेखक परिचय

डॉ उमेश कुमार सिंह हिन्दी में पी-एच.डी हैं और आजकल धनबाद , झारखण्ड में रहकर विभिन्न कक्षाओं के छात्र छात्राओं को मार्गदर्शन करते हैं। You tube channel educational dr Umesh 277, face book, Instagram, khabri app पर भी follow कर मार्गदर्शन ले सकते हैं।


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