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संस्कृति पाठ कक्षा दसवीं

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संस्कृति पाठ का सारांश

Sanskriti path ka saransh 

सभ्यता और संस्कृति शब्दों का सबसे अधिक प्रयोग होता है। लेखक भदंत आनंद कौसल्यायन  लिखते हैं कि क्या यह दोनों एक ही चीज है अथवा दो। इस पाठ में सभ्यता और संस्कृति से जुड़े अनेक प्रश्नों पर विचार किया गया है। लेखक का मानना है कि सभ्यता संस्कृति का ही परिणाम है । मानव संस्कृति  अविभाज्य वस्तु है जो मनुष्य के लिए कल्याणकारी नहीं है, वह न सभ्यता है और ना संस्कृति। यह पाठ सभ्यता और संस्कृति को परिभाषित करने में पूरी तरह सक्षम है।


लेखक आग और सुई धागे के आविष्कार के माध्यम से अपनी बात आसानी से समझाना चाहता है। उनका कहना है कि जिस योग्यता और प्रवृत्ति के बल पर आग अथवा सुई धागे का आविष्कार हुआ है , वह व्यक्ति विशेष की संस्कृति है। और उस संस्कृति के द्वारा जो आविष्कार हुआ वह है सभ्यता। अर्थात जिस चीज का आविष्कार हुआ वह है सभ्यता। आग और सुई धागे सभ्यता है।

संस्कृत कौन है ?


एक व्यक्ति किसी चीज की खोज करता है किंतु संतान को वह चीज पूर्वज से अनायास ही प्राप्त हो जाता है।  जिस व्यक्ति की बुद्धि ने अथवा उसके विवेक ने किसी नए तथ्य का दर्शन किया वह व्यक्ति संस्कृत व्यक्ति हैं । जिसे वह वस्तु पूर्वज से अनायास है प्राप्त हो जाती है वह सभ्य भले ही बन जाए पर संस्कृत नहीं कहला सकता  हैं। आग के  अविष्कार में पेट की ज्वाला है प्रेरणा का कारण रही।

पेट भरने पर भी ऐसा मानव जो संस्कृत है निठल्ला नहीं बैठ सकता। लेखक की समझ में मानव संस्कृति की जो योग्यता आग और सुई धागा का आविष्कार कराती है , वह भी संस्कृति है और जो योग्यता किसी महामानव से सर्वस्व त्याग कराती है ,वह भी संस्कृति है। जैसे महात्मा बुद्ध का त्याग।

सभ्यता क्या है ?  Sabhayata kya hai 

संस्कृति का परिणाम ही सभ्यता है। हमारे खाने पीने के तरीके, हमारे ओढने पहनने के तरीके ,हमारे आवागमन के साधन , हमारे परस्पर कट मरने के तरीके, यह सब हमारी सभ्यता है।

हम अनेक बार संस्कृति और सभ्यता के खतरे में होने की बात सुनते हैं। हमें हिंदू संस्कृति अथवा मुस्लिम संस्कृति के खतरे की बात सुनाई पड़ती है।  यह विभाजन लेखक की समझ में नहीं आता। हां, हिंदुओं को संस्कृति या मुसलमानों की संस्कृति की बात तो कुछ समझ आती है । इस प्रकार हम देखते हैं कि संस्कृति की छीछालेदर की कोई हद नहीं है।  संस्कृति के नाम से जिस कूड़े करकट का बोध होता है वह ना तो संस्कृति है और ना वह रक्षनीय वस्तु है । क्षण क्षण परिवर्तित होने वाले संसार में किसी भी चीज को पकड़कर नहीं बैठा जा सकता।  मानव संस्कृति एक अविभाज्य वस्तु है इसमें कल्याण का अंक श्रेष्ठ और स्थाई है।


संस्कृति पाठ का प्रश्न उत्तर, questions answers of sanskriti lesson 


1. लेखक की दृष्टि में सभ्यता और संस्कृति की सही समझ अब तक क्यों नहीं बन पाई ?


उत्तर - लेखक की दृष्टि में सभ्यता और संस्कृति की सही समझ अब तक इसलिए नहीं बन पाई क्योंकि दोनों को एक ही समझ लिया जाता है। जबकि संस्कृति मानव से मानव के लिए कल्याणकारी आविष्कार कराती है। सर्वस्व त्याग कराती है और इस संस्कृति का परिणाम सभ्यता में देखा जाता है। हम दोनों के मूलभूत अंतर को चिंहित नहीं कर पाए हैं।

2. आग की खोज एक बहुत बड़ी खोज क्यों मानी जाती है? इस खोज के पीछे रही प्रेरणा के मुख्य स्रोत क्या रहे होंगे ?


उत्तर --आग की खोज एक बहुत बड़ी खोज इसलिए मानी जाती है क्योंकि इससे मनुष्य के पेट की ज्वाला शांत होती है। आग की खोज से पहले मानव समाज का अग्नि देवता से साक्षात्कार नहीं हुआ था । आग की खोज के पीछे प्रेरणा का मुख्य स्रोत मनुष्य की भूख रही होगी । आग के द्वारा उसने भोजन को पकाना सीखा।  इस खोज के पीछे भौतिक कारणों का प्रभाव तो था ही पर इसका कुछ हिस्सा हमें मनीषियों से भी मिला है।
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 प्रश्न 3 --  वास्तविक अर्थों में संस्कृत व्यक्ति किसे कहा जाता है ? 


उत्तर -- जो व्यक्ति अपनी बुद्धि से अथवा विवेक से किए गए तथ्य का दर्शन करता है वह व्यक्ति ही वास्तविक संस्कृत व्यक्ति है। ऐसा व्यक्ति किसी नई चीज का आविष्कार या खोजकर्ता है । उदाहरण के लिए न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत का आविष्कार किया तो वह वास्तविक अर्थों में संस्कृत व्यक्ति था। जिस संतान को अपने पूर्वज से कोई वस्तु अनायास प्राप्त हो जाती है वह सभ्य भले ही बन जाए संस्कृत नहीं कहला सकता।

प्रश्न 4. न्यूटन को संस्कृत मानव कहने के पीछे कौन से तर्क दिए गये हैं ? न्यूटन द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों एवं ज्ञान की कई दूसरी बारीकियों को जानने वाले लोग भी न्यूटन की तरह संस्कृत नहीं कहला सकते ?

उत्तर - न्यूटन को संस्कृत मानव कहने के पीछे यह तर्क दिया गया है कि उसने गुरूत्वाकर्षण के सिद्धांत का आविष्कार किया है और जो व्यक्ति अपनी बुद्धि या विवेक से किसी नए तथ्य का आविष्कार करता है ,वह व्यक्ति वास्तविक संस्कृत मानव कहलाता है। इस कसौटी पर न्यूटन खड़ा उतरता है। इसलिए वह संस्कृत मानव कहलाने का अधिकारी है।

अब उन लोगों की बात आती है जो न्यूटन द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों और ज्ञान की दूसरी बारीकियों को जानने वाले हैं। शायद इनकी ज्ञान न्यूटन के पास भी नहीं रहा होगा। ऐसा होने पर वे लोग न्यूटन से अधिक सभ्य कहला सकते हैं, परंतु न्यूटन की तरह संस्कृत नहीं कहला सकते। संस्कृत कहलाने के लिए नये तथ्य का आविष्कार होना चाहिए।

प्रश्न 5. किन महत्वपूर्ण आवश्यकता की पूर्ति के लिए सूई धागे का आविष्कार हुआ होगा ?


उत्तर -- सुई धागे का आविष्कार तन के कपड़ों को सीने की आवश्यकता की पूर्ति के लिए हुआ होगा । इसमें मानव की सर्दी गर्मी से बचने तथा शरीर को सजाने की प्रवृत्ति का विशेष हाथ रहा होगा । सुई धागे के अविष्कार से पहले मनुष्य बिना सिले कपड़े पहनता था , तब मनुष्य के दिमाग में पहले पहल यह बात आई होगी कि लोहे के एक टुकड़े को घिश कर उसके एक सिरे को छेद कर और छेद में धागा डालकर कपड़े के दो टुकड़े एक साथ जोड़े जा सकते हैं । इसी विचार से मनुष्य ने सुई धागे का अविष्कार कर लिया।

 प्रश्न 6. --  मानव संस्कृति अविभाज्य है। स्पष्ट करें ? 


 उत्तर -- संसार के सभी मानव एक समान है। उनकी संस्कृति को मानव संस्कृति कहा जाता है।  यह मानव संस्कृति अविभाज्य है।  इसे बांटा नहीं जा सकता। धर्म के नाम पर संस्कृति का बटवारा करना अनुचित है । हिंदू संस्कृति या मुस्लिम संस्कृति जैसे विभाजन , फिर एक संस्कृति में कई अन्य आधारों पर विभाजन देखने को मिलते हैं । प्राचीन संस्कृति और नवीन संस्कृति का बंटवारा भी मौजूद है । वर्ण व्यवस्था के नाम पर समाज के एक बड़े कर्मठ हिस्से को पद दलित रखना उचित नहीं है।  ऐसे लोग संस्कृति का वास्तविक स्वरूप समझते ही नहीं है।  उनके द्वारा प्रतिपादित संस्कृति के नाम से जिस कूड़े करकट के ढेर का बोध होता है वह संस्कृति है ही नहीं।  संस्कृति एक ही मानव संस्कृति है,  और यह अविभाज्य है

 प्रश्न 7 --  मानव की जो योग्यता उससे विनाश के साधनों का अविष्कार कराती है हम उसे उसकी संस्कृति कहें या  असंस्कृति । आशय स्पष्ट कीजिए  ? 


उत्तर --  मानव की जो योग्यता उससे विनाश के साधनों का आविष्कार कराती है हम उसे संस्कृति ना कह कर  असंस्कृति कहेंगे।  संस्कृति में तो कल्याण की भावना का होना आवश्यक है।  यदि संस्कृति का कल्याण की भावना से नाता टूट जाता है तो वह  असंस्कृति होकर रह जाती है ऐसी  असंस्कृति का परिणाम भी ऐसा ही होता है। संस्कृति में विनाश के साधन का अविष्कार कतई शामिल नहीं होता।

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 लेखक परिचय

डॉ उमेश कुमार सिंह हिन्दी में पी-एच.डी हैं और आजकल धनबाद , झारखण्ड में रहकर विभिन्न कक्षाओं के छात्र छात्राओं को मार्गदर्शन करते हैं। You tube channel educational dr Umesh 277, face book, Instagram, khabri app पर भी follow कर मार्गदर्शन ले सकते हैं।


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