नाटक लिखने का व्याकरण, नाटक की परिभाषा, नाटक शब्द की उत्पत्ति, नाटक कैसे लिखें,Natak kaise likhen,Natak shabad
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हिंदी नाटक
इस पाठ का अनुक्रमांक
नाटक लिखने का व्याकरण
नाटक की परिभाषा
नाटक शब्द की उत्पत्ति
हिन्दी नाटक उद्भव और विकास
नाटक कैसे लिखें
नाटक और अन्य विधाएं
नाटक में समय का बंधन
नाटक के तत्व
नाटक के विषय
नाटक में स्वीकार और अस्वीकार की अवधारणा
नाटक की शिल्प संरचना
नाटक की भाषा कैसी हो?
नाटक लिखने में कितना समय लग सकता है ?
नाटक में कितने अंक होते हैं ?
नाटक के पांच प्रकार
नाटक के संवाद कैसे हो ?
एक अंक के नाटक को क्या कहते हैं ?
नाटक का प्रारंभ कब से माना जाता है ?
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नाटक शब्द ' नट ' शब्द से बना है। यह साहित्य की एक सशक्त विधा है परन्तु यह साहित्य की अन्य विधाओं जैसे कहानी, कविता आदि से थोड़ा भिन्न है। यहां नाटक लिखने का व्याकरण, नाटक लिखने का प्रारूप, नाटकों की भाषा, संवाद, तथा नाटक लिखने के विषय आदि पर विस्तार से चर्चा की गई है।
नाटक लिखने का व्याकरण
मराठी नाटककार विजय तेंदुलकर लिखते हैं , "नाटक का तंत्र लेखक को खुद निश्चित करना पड़ता है । नाट्य तंत्र के नियमों से मार्गदर्शन होगा, लेकिन ऐसा नहीं कि उनके पालन से ही अच्छा नाटक लिखा जा सकेगा। विश्व के बहुत से अच्छे नाटक तो इन नियमों के अपवाद ही साबित होंगे। नाटक का माध्यम खून में उतर जाना चाहिए, संज्ञा पर उसकी छाप उठनी चाहिए। तभी कोई लेखक अच्छा नाटक लिख सकता है।"
मराठी नाटककार विजय तेंदुलकर के इस कथन से यह तो पता चलता है कि नाटक के तंत्र लेखक को स्वयं निश्चित करना चाहिए। फिर भी नाट्य शास्त्र पर प्राचीन काल से ही बहुत चिंतन मनन हुआ है। आज़ भी इस पर चिंतन की आवश्यकता है।
नाटक की रचना प्रक्रिया कविता, कहानी, उपन्यास से कैसे अलग है ?
अब यह प्रश्न उठता है कि कविता, कहानी, उपन्यास की तरह नाटक भी साहित्य की एक सशक्त विधा है। लेकिन फिर भी इसकी रचना प्रक्रिया में अंतर करना क्यों जरूरी हो जाता है। यहां ध्यान देने वाली बात है कि नाटक एक दृश्य काव्य है। यही से नाटक लिखित रूप से दृश्यता की ओर अग्रसर हो जाता है। नाटक का जब तक मंचन नहीं हो जाता तब तब उसकी रचना प्रक्रिया पूर्ण नहीं होती। लेकिन साहित्य की अन्य विधाओं के साथ ऐसा नहीं है। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि साहित्य की अन्य विधाएं सिर्फ पढ़ने अथवा सुनने तक की यात्रा पूरी करती है लेकिन नाटक पढ़ने, सुनने से लेकर देखने तक की यात्रा अपने में समेटे हुए है।
नाटक में समय का महत्व
अब प्रश्न उठता है कि नाटक में समय का कितना महत्व है। समय का बंधन नाटक पर पूरा प्रभाव डालता है। एक नाटक को शुरू से लेकर अंत तक एक निश्चित समय सीमा के अंदर पूरा होना होता है। नाटककार यदि अपनी रचना को भूतकाल से उठाए अथवा भविष्य काल से उठाए , इन दोनों ही स्थितियों में उस नाटक को वर्तमान काल में ही संयोजित होना होता है। इसलिए नाटक के मंच निर्देश हमेशा वर्तमान काल में लिखे जाते हैं। काल कोई भी हो, उसे एक विशेष समय में , विशेष स्थान पर , वर्तमान काल में ही घटित होना पड़ता है।
समय को लेकर एक और तथ्य यह है कि साहित्य की दूसरी विधाओं अर्थात कहानी उपन्यास या फिर कविता को हम कभी भी पढ़ते या सुनते हुए बीच में रुक सकते हैं और कुछ समय बाद फिर वहीं से शुरू कर सकते हैं, परंतु नाटक के साथ ऐसा संभव नहीं है।
एक नाटककार को यह भी सोचना होता है की दर्शक कितनी देर तक किसी कहानी को अपने सामने घटित होते देख सकता है। नाटक में किसी भी चरित्र का पूरा विकास होना जरूरी होता है। इसलिए समय का ध्यान रखना बहुत जरूरी है। नाटक में 3 अंक होते हैं इसलिए उसे भी समय को ध्यान में रखकर बांटना होता है । भरत द्वारा लिखित नाट्यशास्त्र को भी आधार बनाकर यह अपेक्षा की गई है कि प्रत्येक अंक की अवधि कम से कम 48 मिनट की हो।
नाटक में शब्द का महत्व
नाटक का दूसरा महत्वपूर्ण अंग है शब्द । शब्द तो साहित्य की सभी विधाओं के लिए आवश्यक होता है लेकिन कविता और नाटक के लिए शब्द का विशेष महत्व है। नाट्य शास्त्र में भी शब्द को नाटक का शरीर कहा गया है । कहानी तथा उपन्यास शब्दों के माध्यम से किसी स्थिति, वातावरण या कथानक का वर्णन करते हैं। यही कारण है कि इसे वर्णित या नैरेटिव विधा कहा जाता है। कविता इससे भी आगे है। इसके शब्द बिंब और प्रतीक में बदलने की क्षमता भी रखते हैं । यही कारण है कि कविता नाटक के अधिक निकट होता है
नाटककार के लिए यह जरूरी है कि वह अधिक से अधिक संक्षिप्त और सांकेतिक भाषा का प्रयोग करें जो अपने आप में वर्णित ना होकर क्रियात्मक अधिक हो। उन शब्दों में दृश्य बनाने की क्षमता अधिक हो और वह शाब्दिक अर्थ से अधिक व्यंजना की ओर ले जाए।
कविता नाटक के अधिक निकट होता है। कहानी अथवा उपन्यास में भी कहानी घटित होता है लेकिन नाटक में वह कहानी सचमुच हमारी आंखों के सामने घटित होता है। इसी आधार पर कहा जा सकता है कि एक एक कवि सफल नाटककार भी हो सकता है ।
एक अच्छा नाटक वही होता है जो लिखें अथवा बोले गए शब्दों से अधिक वह ध्वनित करे, जो लिखा या बोला नहीं गया हो। नाटक का एक मौन, अंधकार या ध्वनि प्रभाव कहानी या उपन्यास के बीस - पच्चीस पृष्ठों के बराबर हो सकता है।
नाटक में कथ्य का महत्व
नाटक के लिए कथ्य भी बहुत जरूरी है। नाटककार को शिल्प संरचना की पूरी समझ होनी चाहिए। यह बात पूरी समझ में हो कि नाटक को मंच पर मंचित होना है। इसलिए नाटक कार को रचनाकार के साथ ही कुशल संपादक भी होना चाहिए। पहले तो घटनाओं का चुनाव , फिर उन्हें किस क्रम में रखा जाए कि शून्य से शिखर तरफ विकास की दिशा में आगे बढ़े।, यह कला उसे अवश्य आनी चाहिए।
नाटक में सबसे महत्वपूर्ण बात है संवाद। संवाद नाटक का सबसे बड़ा माध्यम है। साहित्य की दूसरी विधाओं का काम इसके बिना चल सकता है परन्तु नाटक का इसके बिना काम नहीं चल सकता है। नाटक के लिए तनाव, उत्सुकता, रहस्य, रोमांच, और अंत में उपसंहार जैसे तत्व का होना आवश्यक है।
वह कौन सी चीज है जो एक सशक्त नाटक को एक कमजोर नाटक से अलग करती है। वह है संवादों का अपने आप में वर्णित या चित्रित न होकर होकर क्रियात्मक होना, दृश्यात्मक होना और लिखें और बोले जाने वाले संवादों से भी ज्यादा उन संवादों के पीछे निहित अनलिखे और अनकहे संवादों की ओर ले जाना जिन्हें अंग्रेजी में सबटैक्स्ट कहा जाता है। जिस नाटक में इस तत्व की जितनी अधिक संभावना होगी वह नाटक उतना ही सफल माना जाएगा।
नाटक में स्वीकार और अस्वीकार की स्थिति
नाटक स्वयं में एक जीवंत माध्यम है। कोई भी दो चरित्र जब आपस में मिलते हैं तो विचारों के आदान-प्रदान में टकरा हट पैदा होना स्वभाविक है यही कारण है कि रंगमंच प्रतिरोध का सबसे सशक्त माध्यम है। वह कभी भी यथास्थिति को स्वीकार नहीं कर सकता। इस कारण उसमें अस्वीकार की स्थिति भी बराबर बनी रहती हैं क्योंकि कोई भी जीता जागता संवेदनशील प्राणी वर्तमान परिस्थितियों को लेकर असंतुष्ट हुए बिना नहीं रह सकता। मजे की बात यह है कि जिस नाटक में इस तरह की और असंतुष्टि, छटपटाहट, प्रतिरोध और अस्वीकार जैसे नकारात्मक तत्वों की जितनी ज्यादा उपस्थिति होगी वह उतना ही गहरा और सशक्त नाटक साबित होगा।
नाटक लिखते समय यह भी ध्यान रखना चाहिए की नाटक में जो चरित्र प्रस्तुत किए जाएं यह सपाट, सतही और टाइपड न हो।
Hindi natak कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर
नाटक लिखने में कितना समय लग सकता है ?
उत्तर - नाटक लिखने में चार घंटे से दो सप्ताह का समय लग सकता है। यह बात नाटक की लम्बाई पर निर्भर करता है।
नाटक में कितने अंक होते हैं ?
उत्तर - नाटक में तीन अंक होते हैं।
नाटक के प्रत्येक अंक की अवधि कितनी देर तक हो ?
उत्तर - नाटक के प्रत्येक अंक की अवधि 48 मिनट की हो।
नाटक के प्रकार कौन कौन है ?
उत्तर - नाटक के पांच प्रकार है -- कामेडी, त्रासदी, प्रहसन, मेलोड्रामा, संगीतमय नाटक ।
नाटक में संवाद कैसे होने चाहिए ?
उत्तर - नाटकों का संवाद सरल हो। संवाद में क्रम, प्रवाह और तर्कसंगत विचार हो। नाटक का संवाद देशकाल, व्यक्ति और विषय के अनुसार हो।
एक अंक के नाटक को क्या कहते हैं ?
उत्तर - एक अंक के नाटक को एकांकी कहते हैं।
नाटक के लिए क्या क्या आवश्यक है ?
उत्तर - नाटक के लिए आवश्यक है -- रोमांच, शब्द, निर्देशक, अभिनेता, मंच व्यवस्थापक, दर्शक।
नाटक का प्रारंभ कब हुआ ?
उत्तर - नाटक की शुरुआत गोपाल चंद्र के नहुष नाटक से 1841ई में माना जाता है।
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