घर का भेदी लंका ढाए मुहावरे अर्थ, कहानी , वाक्य प्रयोग Ghar ka bhedi Lanka dhaye Muhaware,kahawat,arth, meaning, wakya prayog , kahani

      

     
घर का भेदी लंका ढाए मुहावरे

घर का भेदी लंका ढाए 

                                  मुहावरे 

           अर्थ, कहानी , वाक्य प्रयोग 

            Ghar ka bhedi Lanka dhaye

Muhaware,kahawat,arth, meaning, wakya            prayog , kahani

घर का भेदी लंका ढाए मुहावरे का सीधा अर्थ है -- आपसी विवाद में सर्वनाश।

वाक्य प्रयोग


** रावण मरने वाला था ? वह तो विभीषण ने रावण की मृत्यु का रहस्य श्री राम को बता दिया। इसे कहते है, घर के भेदी लंका ढाए।

** जानते हो मोनू, सेठ जी का सारा रहस्य उनके नौकर ने बता दिया। वर्ना पुलिस को कुछ भी नहीं मिलता। इसे कहते हैं घर का भेदी लंका ढाए।


दोस्तों ! आप सब जानते हैं - जब श्रीराम  और रावण का युद्ध चल रहा था तब श्रीराम ने रावण को मारने के लिए न जाने कितने अस्त्र-शस्त्र का प्रयोग कर लिए लेकिन रावण की मृत्यु नहीं हो पा रही थी। 
रामजी को समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें। वे पास खड़े विभीषण की ओर देखने लगे। विभीषण रावण की मृत्यु का रहस्य श्री राम को बताते हैं, तब जाकर रावण की मृत्यु होती है। यदि रावण का भाई विभीषण रावण की मृत्यु का रहस्य नहीं बताया होता तो रावण का विनाश असंभव था। इसलिए यह कहावत  बना -- घर का भेदी  लंका ढाए।




    आपसी फूट विनाश का कारण बनता है 

घर का भेदी लंका ढाए मुहावरे की कहानी 

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किसी प्रदेश में दो मित्र रहते थे। दोनों पढ़ें - लिखें विद्वान थे परन्तु दोनों की शारीरिक संरचना और बनावट थोड़ी भिन्न थी। दुर्भाग्यवश दोनों बेरोजगार थे। कोई काम धंधा नहीं होने के कारण मन में तरह - तरह के ख्याल आते। बेरोज़गारी के कारण धनाभाव तो था ही। समझ में नहीं आता कि क्या करें ? एक दिन उनके मन में ख्याल आया कि क्यों न किसी दूसरे प्रदेश में जाकर कुछ किया जाए।

इस तरह का विचार कर दोनों आगे निकल गए। उन्होंने सोचा कि क्यों न संन्यासी का वेश बनाकर गांव गांव जाकर लोगों को उपदेश दिया जाए। उनकी दुख - तकलीफ को दूर किया जाए। इस कार्य में यश सम्मान भी है और पैसे की भी प्राप्ति होगी। ऐसा विचार कर जो हृष्ट-पुष्ट था वह गुरु बन गया, और जो थोड़ा कमजोर दिख रहा था वह शिष्य बन गया। अब आगे की कहानी सुनिए।

गुरु प्रतिदिन किसी न किसी के घर जाकर लोगों का दुख तकलीफ़ सुनता और कोई न कोई उपाय बताता। कुछ जड़ी बूटी भी देता । झाड़ फूंक भी करता। कालांतर में लोगों का दिन बदलता है , उनकी तकलीफ दूर होती है, ऐसा होता भी है। और गुरु जी को यश मिलता। शिष्य बना मित्र इस बात का खूब प्रचार प्रसार भी करता। यश के साथ गुरु के अनुयायियों की संख्या भी बढ़ रही थी। धन भी आ रहे थे। गुरु शिष्य दोनों खूब खुश। वे महान संत कि श्रेणी में आ गए। इस तरह वे दोनों गांव-गांव जाकर अपना काम करने लगे। और पैसे कमाने लगे।


कुछ दिनों बाद गुरु के मन में लालच आ गया। उसे लगा कि मैं गुरु हूं और मेरे चेले को भी आधा धन का हिस्सा देना पड़ता है जो ठीक नहीं है। ऐसा सोचकर गुरु ने शिष्य के साथ धोका करना शुरू कर दिया। उसे बात बात पर नीचा दिखाने लगा। आमदनी का दो तिहाई भाग अपने पास रख लेता । नतीजा यह कि अब दोनों मित्र में मन मुटाव बढ़ता जा रहा था। शिष्य ने भी गुरु की पोल खोलना शुरू कर दिया। जहां तहां गुरु जी की सच्चाई का वर्णन शुरू हो गया । परिणाम यह हुआ कि गुरु जी की पोल खुल गई और दोनों को वहां से जाने बचाकर भागना पड़ा। इसे कहते है " घर के भेदी लंका ढाए।


दोस्तों ! यह कहानी आपको कैसी लगी जरूर बताएं। धन्यवाद।


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