संतन को कहां सीकरी सो काम। आवत जात पनहियां टूटी, बिसरि गये हरि नाम

 

भारतीय संतों की महानता 

संतन को कहां सीकरी सो काम।

आवत जात पनहियां टूटी, बिसरि गये हरि नाम

एक बार की बात है। बादशाह अकबर कृष्ण भक्त कवि कुंभनदास की गायकी की ख्याति सुनकर उन्हें अपने दरबार में बुलाने के लिए पालकी भेजा। कुभानदास बड़े स्वाभिमानी और निडर थे। वे श्री कृष्ण के भक्त जो थे। बादशाह अकबर के द्वारा भेजे पालकी को ठुकरा दिया। पैदल ही फतेहपुर सीकरी पहुंचे। बादशाह अकबर बहुत खुश हुआ। उसने कुंभनदास जी से कुछ सुनाने का आग्रह किया। उसकी इच्छा थी कि कुंभनदास बादशाह की खिदमत में कुछ गाएंगे। परन्तु भक्त कवि कुंभनदास जी ने गाया --

संतन को कहां सीकरी सो काम।

आवत जात पनहियां टूटी, बिसरि गये हरि नाम ।।

अर्थात साधु - संतों को फतेहपुर सीकरी से क्या काम है। यहां से उन्हें क्या लेना-देना है ? झूठे भटकते रहेंगे। और बादशाह के पास आने - जाने के क्रम में पनही ( जूते ) भी टूट जाएंगे। और हरि नाम भी भूल जाएंगे। 

बादशाह अकबर समझ गये कि ईश्वर भक्त बड़े निडर होते हैं। इन्हें दरबारी नहीं बनाया जा सकता है। ये स्पष्ट वक्ता हैं, इनपर नाराज नहीं होना चाहिए।

नाहिंन रह्यै मन में ठौर।

नंद नंदन अछत कैसे आनियौ उर और।।

इसी तरह बादशाह अकबर भेष बदलकर तानसेन के साथ स्वामी हरिदास के पास पहुंचा। बहुत आग्रह करने पर स्वामी हरिदास ने कृष्ण भक्ति का एक भजन सुनाया। उनके स्वर के जादू से अकबर बहुत प्रभावित हुआ। बादशाह अकबर ने अपनी प्रशंसा में कुछ गाने को कहा। स्वामी हरिदास ने गाया - 


नाहिंन रह्यै मन में ठौर।

नंद नंदन अछत कैसे आनियौ उर और।।

अर्थात , अब हमारे हृदय में कोई स्थान नहीं है। हमारे हृदय में तो नंद - नंदन श्री कृष्ण बसे हुए हैं। अब उनके होते दूसरे को अपने हृदय में कैसे लाएं। 
यह है अन्नय भक्ति और प्रेम का उदाहरण। बादशाह अकबर समझ गया, सच्चे संत को डिगाना असंभव है। 


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