नदी का रास्ता कविता का भावार्थ, शब्दार्थ और प्रश्न उत्तर,नदी को रास्ता किसने दिखाया,Nadi ka rasta poem, explain,poet Balkrishan rao

 

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विषय सूची

नदी का रास्ता कविता
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नदी का रास्ता कविता का प्रश्न उत्तर


Nadi ka rasta poem, नदी का रास्ता कविता, कवि बाल कृष्ण राव

नदी को रास्ता किसने दिखाया 
सिखाया था उसे किसने
कि अपने भावना के वेग को
उन्मुक्त बहने दे,
कि वह अपने लिए
खुद खोज लेगी
सिंधु की गंभीरता
स्वच्छंद बहकर ?

इसे हम सुनते आए युगों से,
और सुनते ही युगों से आ रहे उत्तर नदी का --
मुझे कोई कभी आया नहीं था राह दिखलाने,
बनाया मार्ग मैंने आप ही अपना  ।

ढकेला था शिलाओं को,
गिरी निर्भीकता से मैं कई ऊंची प्रपातों से,
वनों से कंदराओं में
भटकती भूलती मैं
फूलती उत्साह से प्रत्येक बाधा विघ्न को
ठोकर लगाकर ठेलकर
बढ़ती गई आगे निरंतर
एक तट को दूसरे से दूरतर करती।

बढ़ी सम्पन्नता के साथ
और अपने दूर तक फैले हुए
साम्राज्य के अनुरूप
गति को मंदकर--
पहुंची जहां सागर खड़ा था
फेन की माला लिए
मेरी प्रतीक्षा में,
यही इतिवृत्त मेरा।

मार्ग मैंने आप ही अपना बनाया था 
मगर भूमि का दावा
कि उसने ही बनाया था नदी को मार्ग,
उसने ही चलाया था नदी को फिर
जहां - जैसे - जिधर चाहा,
शिलाएं सामने कर दीं
जहां वह चाहती थी
रास्ते बदले नदी,
ज़रा बाएं मुड़े
या दाहिने होकर निकल जाएं,
स्वयं नीची हुई
गति में नदी के 
वेग लाने के लिए
वहीं समतल
जहां चाहा कि उसकी चाल धीमी हो।

बताती राह
गति को तीव्र अथवा मंद करती
जंगलों में और नगरों में चलाती
ले गयी भोली नदी को भूमि सागर तक ।
किधर है सत्य ?

मन के वेग ने
परिवेश को अपनी सबलता से झुकाकर
रास्ता अपना निकाला था
कि मन के वेग को
बहना पड़ा बेबस,
जिधर परिवेश ने झुककर
स्वयं ही राह दे दी थी --
किधर है सत्य ?

नदी का रास्ता कविता का भावार्थ 

प्रस्तुत कविता में कवि ने एक महत्वपूर्ण  प्रश्न उठाया है कि जीवन में आगे बढ़ने के लिए मनुष्य की इच्छा शक्ति अधिक महत्वपूर्ण है अथवा परिस्थितियां। समुद्र से मिलने तक की यात्रा में नदी के भीतरी वेग की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण है अथवा ऊंची नीची भूमि की। इस संबंध में नदी और भूमि के अपने-अपने दावे हैं । किधर है सत्य -- प्रश्न का उत्तर कवि पाठकों के लिए छोड़ देता है।

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 प्रश्न  - नदी के विषय में हम कौन सा प्रश्न पूछते आए हैं ? 


उत्तर - नदी को रास्ता किसने दिखाया ? उसे किसने सिखाया भावना के वेग में आगे बढ़ना। नदी के विषय में हम यही पूछते आए हैं।

 प्रश्न  -- नदी को रास्ता दिखाने के विषय में धरती का क्या दावा है ?


उत्तर - नदी को रास्ता दिखाने के विषय में धरती का दावा है कि वह जब चाहा , जिधर चाहा नदी को मोड़ दी है।

प्रश्न -- नदी की प्रतीक्षा में कौन खड़ा रहता है ? नदी उसके निकट पहुंचते समय अपनी गति को क्यों धीमा क्यों कर देती है ?


उत्तर - नदी की प्रतीक्षा में फेन की माला लिए सागर खड़ा रहता है। नदी भी सागर को अपने प्रतीक्षा में खड़े देखकर भाव विभोर होकर अपनी गति धीमी कर देती है।



प्रश्न - धरती के अनुसार वह नदी की चाल को धीमा या तेज करने के लिए क्या करती है ? 


उत्तर - धरती का कहना है कि वह जैसे चाही नदी के चाल को कंट्रोल की। नदी की गति को तेज करने के लिए धरती नीची हो जाती है और नदी की गति को कम करने के लिए ऊंची हो जाती है।


प्रश्न -- नदी ने अपनी निर्भीकता को कैसे कायम किया है? 


उत्तर -- नदी प्रत्येक विघ्न बाधाओं का सामना करके अपनी निर्भीकता को कायम रखा है।

प्रश्न -  मनुष्य जीवन की तुलना यदि नदी से की जाए तो उसे आगे बढ़ने के लिए क्या करना होगा ?

उत्तर - मनुष्य जीवन की तुलना यदि नदी से की जाए तो उसे आगे बढ़ने के लिए नदी की तरह ही संघर्ष करना होगा। यह ठीक है कि समय और परिस्थितियां मनुष्य को कभी कभी बेबश और परेशान कर देती हैं लेकिन मनुष्य को हारना - थकना नहीं चाहिए तथा कर्तव्य पथ पर लगातार बढ़ते जाना चाहिए।

प्रश्न -- मनुष्य के निर्माण में उसके परिवेश का अधिक हाथ होता है या उसके इच्छा शक्ति का ? उत्तर दीजिए ।

उत्तर -- मनुष्य के निर्माण में उसकी इच्छा शक्ति का अधिक हाथ होता है। परिस्थितियां बादल बनकर घेरती है, परंतु यदि इच्छा शक्ति मजबूत हो तो सारे रास्ते खुल जाते हैं।


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