गिरिधर की कुंडलियां, Giridhar ki kundaliya, bhawarth, questions answers कुंडली के अर्थ, शब्दार्थ
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बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि लेई ; का अर्थ बताएं
बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि लेई का हमारे जीवन में क्या महत्व है।
बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुधि लेई ।
जो बनि आवै सहज में , ताहि में चित्त देई ।।
ताहि में चित्त देई, बात जोई बनी आवै ।
दुर्जन हसै न कोई , चित्त में खता न पावै।।
कह गिरधर कविराय, यहै करुमन परतीती।
आगे को सुख समुझि, हो, बीती सो बीती।।
भावार्थ
गिरिधर की कुंडलियां शिक्षा के क्षेत्र में बहुत प्रसिद्ध है। प्रेरणा दायक है। कवि कहते हैं -- जो बीत गई सो बात गई। जो बात बीत गई उसे वहीं भूल जाना चाहिए। और आगे का काम देखना चाहिए। इसी में भलाई है। इससे मन में कोई दुःख भी नहीं होता। इसलिए बीती बातें भूल जाओ।
अपने मन की बात किसी को क्यों नहीं बताना चाहिए
साईं अपने चित्त की, भूलि न कहिए कोई।
तब लग मन में राखिए , जब लग कारज होई।।
जब लग कारज होई , भूलि कबहूं नहिं कहिए।
दुरजन हंसै न कोई , आप सियरे बन रहिए।।
कह गिरधर कविराय बात चतुरन की ताई।
करतूती कहि देत, आप कहिए नहिं साईं।।
भावार्थ
गिरिधर कवि कहते हैं -- अपने मन की बात दूसरे को मत बताओ। तब तक मन में दबाकर रखो जब तक काम पूरा नहीं हो जाए।मन को शांत रखकर काम करना चाहिए। जब काम हो जाएगा तो सभी स्वयं जान जाएंगे। इसलिए पहले नहीं कहो।
बिना बिचारे जो करे, सो पीछे पछताय।
काम बिगारै आपनो , जग में होत हंसाय।।
जग में होत हंसाय चित्त में चैन न पावै।
खान पान सनमान , राग - रंग मनहि न भावे।
कह गिरधर कविराय, दुःख कछु टरत न टारे।
खटकत है जिय माहिं, कियो जो बिना बिचारे।।
भावार्थ
गिरधर कविराय कहते हैं - जो व्यक्ति बिना सोचे विचारे काम करते हैं वे बाद में बहुत पछताते हैं। संसार में उनकी बहुत शिकायत होती है । इसलिए बिना बिचारे कोई भी काम नहीं करना चाहिए।
दौलत पाय न कीजिए, सपने में अभिमान।
चंचल जल दिन चारि को, ठाऊं न रहत निदान।।
ठाऊं न रहत निदान, जियत जग में जस लीजै।
मीठे वचन सुनाय, विनय सबही की कीजै।।
कह गिरधर कविराय,अरे यह सब घट तौलत ।
पाहुन निसि दिन चारि, रहत सबही के दौलत।।
गिरधर कविराय कहते हैं -- दौलत पाकर अभिमान मत करो। यह मेहमान की तरह आता है और फिर चला जाता है। यह कहीं एक जगह नहीं ठहरता है। यदि दौलत आ जाता है तो हमें मीठा वचन बोलना चाहिए। किसी को सताना नहीं चाहिए। दौलत परीक्षा लेता है , धैर्य का। स्वभाव का।
सवेरे सवेरे कविता पढे
गुन के गाहक सहस नर, बिनु गुन लहै न कोय।
जैसे कागा कोकिला , शब्द सुने सब कोय।।
शब्द सुने सब कोय, कोकिला सबै सुहावन।
दोऊ को इक रंग काग सब भय अपावन।।
कह गिरधर कविराय, सुनो हो ठाकुर मन के।
बिनु गुन लहै न कोय, सहस नर ग्राहक गुन के।।
गिरधर कविराय कहते हैं -- गुण की मांग सभी करते हैं। बिना गुण के कोई नहीं पूछता है भाई। कोयल और कौआ का रंग एक समान है लेकिन कोयल को लोग पूछते है , कौए को भगाते हैं। यही गुण और अवगुण में भेद है।
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