गुलाबी चूड़ियां कविता , कवि नागार्जुन, gulabi churiyan poem, bhawarth, questions answers
गुलाबी चूड़ियां कविवर नागार्जुन रचित वात्सल्य रस की एक उत्कृष्ट रचना है। यहां कवि ने एक ड्राइवर जैसे उजड़ समझे जाने वाले व्यक्ति के मन में उत्पन्न अपनी बेटी के प्रति वात्सल्य प्रेम का जो भाव दिखाया है व अनुपम और अविस्मरणीय है। यहां गुलाबी चूड़ियां कविता और भावार्थ तथा प्रश्न उत्तर दिया गया है।
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सवेरे सवेरे कविता पढे
प्राइवेट बस का ड्राइवर हैं तो क्या हुआ ?
सात साल की बच्ची का पिता तो हैं !
सामने गियर से ऊपर
हुक से लटका रखी है
कांच की चार चूड़ियां गुलाबी।
बस की रफ्तार के मुताबिक
हिलती रहती हैं,
झुक कर मैंने पूछ लिया,
खा गया मानो झटका।
अधेड़ उम्र का मुच्छड़ रोबीला चेहरा
आहिस्ते से बोला : हां सा बन
लाख कहता हूं, नहीं मानती है मुनिया।
टांगे हुए हैं कई दिनों से
अपनी अमानत यहां अब्बा की नजरों के सामने।
मैं भी सोचता हूं
क्या बिगाड़ती हैं चूड़ियां,
किस जुर्म पे हटा दूं इनको यहां से ?
और , ड्राइवर ने एक नजर मुझे देखा,
और मैंने एक नजर उसे देखा,
छलक रहा था दूधिया वात्सल्य बड़ी - बड़ी आंखों से,
तरलता हावी थी सीधे - सादे प्रश्न पर,
और, अब वे निगाहें फिर से हो गई सड़क की ओर।
और मैंने झुक कर कहा --
हां भाई, मैं भी पिता हूं,
वो तो बस यूं हीं पूछ लिया आपसे
वर्ना ये किसको नहीं भाएंगी
नन्ही कलाइयों की गुलाबी चूड़ियां ।
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