इहि आस अट्क्यो रहत अलि गुलाब के मूल। होइह फिर बसन्त ऋतु, इन डारन, वहीं फूल।।

 

अलि का अर्थ भौंरा


इहि आस अट्क्यो रहत अलि गुलाब के मूल।

होइह फिर बसन्त ऋतु, इन डारन, वहीं फूल।।

कविवर बिहारी लाल कहते हैं, 

पतझड़ में गुलाब पौधे के फूल पत्ते झड़ जाते हैं। कहीं कोई रस नहीं होता। फिर भी भौंरा आशा नहीं छोड़ता। उसी गुलाब के सूखे जड़ में चिपका रहता है। उम्मीद करता है कि फिर बसन्त ऋतु आएगा और यही पौधे सुंदर फूलों से लद जाएंगे और तब मीठे-मीठे रसों की भरमार होगी।

डॉ उमेश कुमार सिंह हिन्दी में पी-एच.डी हैं और आजकल धनबाद , झारखण्ड में रहकर विभिन्न कक्षाओं के छात्र छात्राओं को मार्गदर्शन करते हैं। You tube channel educational dr Umesh 277, face book, Instagram, khabri app पर भी follow कर मार्गदर्शन ले सकते हैं।


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