सवेरे - सवेरे , हिंदी कविता, कवि कुंवर नारायण sawere - sawere , poem in Hindi, poet kuwar narayana
सवेरे - सवेरे , हिंदी कविता, कवि कुंवर नारायण sawere - sawere , poem in Hindi, poet kuwar narayana
कार्तिक की एक हंसमुख सुबह!
नदी - तट से लौटती गंगा नहाकर
सुवासित भींगी हवाएं
सदा पावन
मां सरीखी
अभी जैसे मंदिरों में चढ़ाकर खुशरंग फूल
ठंड से सीत्कारती घर में घुसी हो,
और सोते देख मुझको जगाती हो --
सिरहाने रख एक फूल हरसिंगार के ,
नर्म ठंडी उंगलियों से गाल छूकर प्यार से
बाल बिखरे हुए तनिक सवांर के --
प्रश्न -- प्रातः काल में नींद से कौन जगाती हैं ?
उत्तर -- प्रातःकालीन बेला में नींद से हमें मां जगाती हैं ।
प्रश्न सवेरे सवेरे मां सरीखी समीर जगाने आती है । कविता में यह क्यों कहा गया है ?
उत्तर -- प्रातः काल में सवेरे सवेरे हमें सोते से मां जगाती हैं। उसी तरह सवेरे सवेरे ठंडी हवाएं थोड़ी तेज होकर हमारे गालों को छूकर हमें जगाती हैं। इसलिए कहा गया है कि सवेरे सवेरे समीर हमें जगाती है मां की तरह।
प्रश्न -- ठंडी हवाएं किस प्रकार जगाती हैं ?
उत्तर -- ठंडी हवाएं धीरे धीरे सहला कर मां की तरह जगाती हैं ।
राम नाम की महानता
राम -नाम - मनि दीप धरु जीह देहरि द्वार।
'तुलसी ' भीतर - बाहिरौ जो चाहसि उजियार।।
भक्त शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं --- यदि शरीर के अंदर और बाहर दोनों ओर पवित्रता का आलोक फैलाना चाहते हो तो राम - नाम रूपी दीपक को अपनी जीभ पर सदा के लिए रख लो। जिस प्रकार घर के अंदर और बाहर दोनों ओर प्रकाश के लिए दरवाजे पर दीपक रखना चाहिए, इससे दोनों ओर प्रकाश फैलता है। उसी प्रकार शरीर के भीतर और बाहर दोनों ओर के हिस्से को पवित्र रखना है तो राम नाम का सदा उच्चारण करते रहो।
तुलसी दास के इस दोहे में रूपक अलंकार की बहुत सुंदर अभिव्यंजना हुई है। छंद दोहा है।
तुलसी के राम पढ़ने के लिए क्लिक करें
Popular posts of this blog, click and watch
अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस 2021
नेताजी का चश्मा "कहानी भी पढ़ें
सच्चा हितैषी निबन्ध । क्लिक करें और पढ़ें।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें