हिमालय , कविता, कक्षा दूसरी
हिमालय , कविता, कक्षा दूसरी
Himalaya poem
खड़ा हिमालय बता रहा है, डरो न आंधी - पानी में।
डटे रहो सब अपने पथ में, कठिनाई तूफानों में।।
डिगो न अपने पथ पर से तो सब कुछ पा सकते प्यारे।
तुम भी ऊंचे बन सकते हो, छू सकते नभ के तारे।।
अटल रहा जो अपने पथ पर लाख मुशिबत आने पर।
मिली सफलता उसको जग में, जीने में, मर जाने में।।
जितनी भी बाधाएं आईं, उन सबसे तो लड़ा हिमालय।
इसलिए तो दुनिया भर में, सबसे बड़ा हुआ हिमालय।।
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हिमालय कविता का भावार्थ
कविता 'हिमालय ' में कवि संघर्ष और लगातार काम करने की प्रेरणा देते हुए कहते हैं कि , हिमालय की तरह अपने कर्तव्य पथ पर डटे रहो। किसी आंधी तूफान से नहीं डरो। लगातार संघर्ष से ही मनुष्य आसमान की बुलंदियों को छू सकता है। जो अपने पथ पर हिमालय की तरह अटल रहेगा वही सफलता का स्वाद चख सकेगा।
हिमालय सदियों से भारत का प्रहरी रहा है। यह पर्वतों का राजा है और सालों भर इसकी चोटियां सफेद बर्फ से ढकी रहती है। हमें भी हिमालय की तरह अपने कार्य पर डटे रहना चाहिए।
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