मना लो जन्मदिन भूखे वतन का
Mana lo janmdin bhukhe watan ka
Shish pr Mangal kalash rakh
मना लो जन्मदिन भूखे वतन का
शीश पर मंगल कलश रख
भूल कर जन के सभी दुख
चाहते हो तो मना मना लो जन्म दिन भूखे वतन का।
जो उदासी है हृदय पर
वह उभर आती समय पर ,
पेटकी रोटी जुड़ाओ,
रेशमी झंडा उड़ाओ ,
ध्यान तो रखो मगर उस अधफटे नंगे वदन का ।
तन कहीं पर ,मन कहीं पर ,
धन कहीं , निर्धन कहीं पर ,
फूल की ऐसी विदाई,
शूल को आती रुलाई ,
आंधियों के साथ जैसे हो रहा सौदा चमन का ।
आग ठंडी हो , गरम हो , तोड़ देती है मरम को,
क्रांति है आनी किसी दिन ,
आदमी घड़ियां रहा गिन,
राख कर देता सभी कुछ अधजला दीपक भवन का ।
मना लो जन्मदिन भूखे वतन का।।
प्रश्न -- 'अधजला दीपक भवन का' से कवि का क्या अभिप्राय है ?
उत्तर -- व्यथित प्राणी
प्रश्न --' आग ठंडी हो गरम हो ' का क्या प्रतीकार्थ है ?
उत्तर -- आग आक्रोश का प्रतीक है। कवि कहना चाहता है कि आक्रोश धीमा हो या तीव्र। क्रांति अवश्य आती है।
प्रश्न --- "आंधियों के साथ जैसे हो रहा सौदा चमन " का से कवि का क्या अभिप्राय है ?
उत्तर -- दुःख और आपदाओं। यहां आंधियों शब्द दुःख और आपदाओं का प्रतीक है। चमन शब्द जनता का प्रतीक है। इस प्रकार इसका अर्थ हुआ कि देश की जनता दुखों और आपदाओं से समझौता कर रही है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें