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पुनर्मुषिकोभव कहानी, पंचतंत्र की कथा, फिर चुहिया की चुहिया, punarmushiko bhaw, phir chuhiya ki chuhiya, panchtantra story

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पुनर्मुषिकोभव कहानी, पंचतंत्र की कथा, फिर चुहिया की चुहिया, ऋषि और चुहिया की कहानी  punarmushiko bhaw, phir chuhiya ki chuhiya, panchtantra story, Rishi aur chuhiya ki kahani प्राचीन कथा साहित्य में पंचतंत्र की कहानियों का विशेष महत्व है। पुनर्मुषिकोभव पंचतंत्र की प्रमुख कहानी है जो विभिन्न कक्षाओं में पढ़ाई जाती है। इस कहानी में एक सिद्ध योगी साधू और चुहिया से लड़की बनी युवती की कहानी है जिसमें फिर से लड़की को चुहिया बनना पड़ता है। इस तरह इस कहानी का शीर्षक पुनर्मुषको भव अथवा फिर चुहिया की चुहिया दिया गया है। बहुत पहले समय की बात है गंगा नदी के तट पर कई साधु आश्रम में रहते थे। उनके गुरु बहुत विद्वान और सिद्ध पुरुष थे । एक दिन की बात है। गुरुजी गंगा में स्नान कर नदी तट पर प्रार्थना कर रहे थे । तभी आकाश में उड़ते हुए बाज के पंजों से छूटकर एक छोटी सी चुहिया उनके हाथों में आ गिरी । वह चुहिया भूरे रंग की लंबी मूछों वाली और चमकीली आंखों वाली थी जो देखने में बहुत सुंदर लग रही थी। तपस्वी को चुहिया बहुत अच्छी लगी उन्होंने अपने मंत्र बल से चुहिया को एक सुंदर बालिका बना दिया । उस कन्या को वह अपन

Kanyadaan poem, poet Rituraj, कन्यादान कविता, कवि ऋतुराज, भावार्थ, व्याख्या, प्रश्न उत्तर

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  Kanyadaan poem, poet Rituraj, कन्यादान कविता, कवि ऋतुराज, भावार्थ, व्याख्या, प्रश्न उत्तर , कवि ऋतुराज का जीवन परिचय, पाठ का सारांश, ऋतुराज की काव्यगत विशेषताएं, दसवीं कक्षा  कन्यादान कक्षा दसवीं में पढाई जाने वाली एक प्रेरणादाई कविता है जिसमें बालिका शोषण और उत्पीड़न के प्रति लोगों को आगाह किया गया है। इस कविता में एक मां अपनी बेटी को परंपरागत आदर्शों से हटकर कुछ उपयोगी शिक्षा दे रही है। यहां कवि ने मां - बेटी की घनिष्ठता को एक नया परिभाषा देने का प्रयास करता है। पिता बेटी की विवाह के समय बेटी का कन्यादान करता है। वहां बेटी को भावी जीवन की कुछ सीख दी जाती है। मां बेटी की सबसे निकटतम सहेली होती है। सामाजिक व्यवस्था में स्त्री के कुछ प्रतिमान गढ़ लिए जाते हैं, कवि उन्हीं प्रतिमानों को तोड़ने का प्रयास करता है। पाठ का सार अथवा सारांश कविता कन्यादान में मां बेटी को परंपरागत आदर्श रूप से हटकर सीख दे रही है । कवि ने मां बेटी के संबंध की घनिष्ठता दर्शाते हुए नए सामाजिक मूल्य की परिभाषा देने का प्रयास किया है । सामाजिक व्यवस्था में स्त्री के आचरण के कुछ प्रतिमान गढ लिए गए हैं।  कवि ने उन्हे

बच्चे काम पर जा रहे हैं , कविता, कवि राजेश जोशी, भावार्थ, व्याख्या, प्रश्न उत्तर, राजेश जोशी का जीवन परिचय, Bachche kam pr ja rhe hai poem, 9th class hindi

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 बच्चे काम पर जा रहे हैं , कविता, कवि राजेश जोशी, भावार्थ, व्याख्या, प्रश्न उत्तर, राजेश जोशी का जीवन परिचय, Bachche kam pr ja rhe hai poem, 9th class hindi, NCERT solutions  ' बच्चे काम पर जा रहे हैं' कविता में कवि राजेश जोशी ने बाल मजदूरी के विषय को आधार बनाकर बच्चों के बचपन को छीन जाने की व्यथा को अभिव्यक्ति दी है। इस कविता में उस सामाजिक - आर्थिक विडम्बना की ओर समाज का ध्यान आकर्षित किया गया है , जिसमें अनेक बच्चे शिक्षा, खेल और जीवन की खुशियों से वंचित रह जाते हैं। यहां कविता , बच्चे काम पर जा रहे हैं, इसका भावार्थ , व्याख्या , कवि राजेश जोशी का जीवन परिचय, पाठ का प्रश्न उत्तर, वस्तु निष्ठ प्रश्न - उत्तर के साथ दिए गए हैं , जिससे नौवीं कक्षा के विद्यार्थियों को लाभ होगा। बच्चे काम पर जा रहे हैं, कविता, भावार्थ, व्याख्या, bachche Kam pr ja rhe hai, poem, bhawarth, explanation, Kavi parichay, NCERT solutions, questions answers, MCQ. बच्चे काम पर क्यों जा रहे हैं ? इसे विवरण की तरह न लिखकर सवाल की तरह क्यों पूछा जाना चाहिए। बच्चे काम पर क्यों जा रहे हैं। बच्चे कहां जा रहे हैं

हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर, अक्का देवी, he mere Juhi ke phul jaise ishwar, akka devi

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 हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर, कविता, कवयित्री अक्का देवी, कविता, 11 वीं हिन्दी, भावार्थ, काव्य सौंदर्य, अलंकार, प्रश्न उत्तर, कर्नाटक की मीरा अक्का देवी, अक्का देवी भगवान शिव की आराधिका,         हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर मंगवाओ मुझको भीख और कुछ ऐसा करो कि भूल जाऊं अपना घर पूरी तरह झोली फैलाऊ और न मिले भीख कोई हाथ बढ़ए  कुछ देने को तो वह गीर जाए नीचे और यदि मैं झुकूं उसे उठाने तो कोई कुत्ता आ जाए और उसे झपटकर छीन ले मुझसे। व्याख्या और भावार्थ प्रस्तुत वचन कर्नाटक की सुप्रसिद्ध कवयित्री अक्का देवी द्वारा रचित है। यहां वह स्वयं को भगवान शिव जी के चरणों में समर्पित करती हुई कहती हैं -- हे जूही के फूल जैसे कोमल और  मनोरम ईश्वर ! तुम मेरा सबकुछ छीन लो। कुछ ऐसा करो कि मुझे भीख मांगनी पड़े। मैं अपना घर , गृहस्थी सब कुछ भूल जाऊं। काश ! ऐसा हो कि मैं दूसरे के सामने झोली फैलाऊं। परन्तु मुझे भीख भी न मिले। कोई मुझे कुछ देने के लिए हाथ बढ़ाए और वह मुझे न मिलकर नीचे गिर जाए। और इतना ही नहीं, मैं उसे उठाने के लिए नीचे झुकूं, तब तक उसे कुत्ता झपटकर छीन ले जाए। मै

ऊंची दुकान फीका पकवान' मुहावरे का अर्थ, कहानी और वाक्य में प्रयोग, निबंध, oochi dukan phika pakwan muhaware , meaning, uses in sentences, story, essay on oonchi dukan phika pakwan.

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  ऊंची दुकान फीका पकवान मुहावरे का अर्थ, कहानी और वाक्य में प्रयोग, निबंध, oochi dukan phika pakwan muhaware , meaning, uses in sentences, story, essay on oonchi dukan phika pakwan. ऊंची दुकान फीका पकवान मुहावरे का अर्थ है - दिखावा बहुत होना लेकिन वास्तविकता उसके अनुरूप नहीं होना।  ऊपर - ऊपर खूब डील डौल और भीतर में कुछ नहीं। ऊंची दुकान और फीका पकवान मुहावरे का वाक्य में प्रयोग * हम तो महावीर साव की दुकान का नाम पढ़कर यहां चले आए थे, लेकिन यहां तो ऊंची दुकान और फीका पकवान मुहावरे वाली बात है। देखते नहीं जलेबियां बासी हैं। * इतनी बड़ी दुकान में खट्टी और बासी मिठाइयां बिक रही हैं, यह तो ऊंची दुकान और फीका पकवान वाली कहावत चरितार्थ हो रही है। * चार मील पैदल चलकर हमलोग बिंदु माल जिंस खरीदने गये थे। परन्तु वहां तो बुधनी हटिया से भी खराब कपड़े मिल रहे हैं। सचमुच बिंदु माल ऊंची दुकान और फीका पकवान जैसी हो गई है। * मदन मोहन का जन्म दिन था। दोस्तों ने कहा - इस बार प्रकाश होटल का केक खाएंगे। प्रकाश होटल वहां का नामी गिरामी होटल था। अब क्या, मदन अपने दोस्तों को जन्म दिन मनाने वही लै गया। लेकिन केक

हे भूख! मत मचल, अक्का देवी, 11वीं कविता, He bhukh mat machal, Akka devi, कर्नाटक की मीरा, भावार्थ, प्रश्न उत्तर

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हे मेरे  जूही के फूल जैसे ईश्वर इस पाठ में 11th class hindi में पढ़ाई जाने वाली कविता हे भूख! मत मचल का विस्तार से वर्णन किया गया है। छात्रों के उपयोग के लिए प्रश्न उत्तर भी दिए गए हैं। हे भूख ! मत मचल। कविता, अक्का देवी, भावार्थ एवं व्याख्या, प्रश्न उत्तर। कर्नाटक की मीरा कहीं जाने वाली कवयित्री अक्का देवी। He bhukh mat machal , NCERT solutions, poem.11th हिन्दी।   हे भूख! मत मचल प्यास, तड़प मत हे नींद! मत सता क्रोध, मचा मत उथल-पुथल हे मोह ! पाश अपने ढील लोभ, मत ललचा हे मद! मत कर मदहोश ईर्ष्या , जला मत ओ चराचर! मत चूके अवसर आई हूं संदेश लेकर चन्नमल्लिकार्जुन का। शब्दार्थ मचल- पाने की जिद करना। पाश - बंधन।मद - नशा। मदहोश - नशे में पागल। चराचर - जड़ और चेतन संसार। चूक - भूल। चन्नमल्लिकार्जुन - भगवान शिव। व्याख्या प्रस्तुत पंक्तियां कर्नाटक की प्रसिद्ध कवयित्री अक्का देवी द्वारा लिखित है। अक्का देवी को कर्नाटक की मीरा कहा जाता है। ये भगवान शिव की अराधिका है। वह सांसारिकता त्याग कर शिव जी की आराधना में लीन होने का संदेश देती हैं। कवयित्री अक्का देवी कहती हैं, से भूख ! हे सांसारिक वस्तुओं

Bhartiya vastukala aur murtikala, Bhartiya vastukala aur murtikala ki visheshta, sindhu ghari , Harappa, mohanjodaro Sarnath stup, भारतीय वास्तुकला की विशेषताएं, भारतीय वास्तुकला और मूर्ति कला

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 भारतीय वास्तुकला और मूर्ति कला, भारतीय वास्तुकला क्या है ? भारतीय वास्तुकला की विशेषताएं, सिंधु घाटी सभ्यता के दो प्रमुख नगर - हड़प्पा और मोहनजोदड़ो, मौर्य काल में वास्तुकला और मूर्ति कला, बौद्ध धर्म में स्तूप, सांची का स्तूप, सारनाथ के स्तंभ, गुप्त काल भारतीय कला का स्वर्ण युग, देवगढ़ का दशावतार मंदिर, लोहे का लाट, अजंता एलोरा और बाघ की गुफाएं, कोणार्क का सूर्य मंदिर और खजुराहो का मंदिर, दक्षिण भारत के मंदिरों में वास्तुकला और मूर्ति कला, बृहदेश्वर मंदिर, मीनाक्षी मंदिर, बुलंद दरवाजा, अमृतसर का स्वर्ण मंदिर और आगरा का ताजमहल वास्तुकला का श्रेष्ठ उदाहरण। Bhartiya vastukala aur murtikala, Bhartiya vastukala aur murtikala ki visheshta, sindhu ghari , Harappa, mohanjodaro Sarnath stup, भारतीय वास्तुकला की विशेषताएं, भारतीय वास्तुकला और मूर्ति कला भारतीय वास्तुकला और मूर्ति कला का इतिहास बहुत पुराना है। भारतीय कला की कहानी की शुरुआत लगभग पांच हजार साल पुरानी है। सिंधु घाटी सभ्यता के दो प्रमुख नगर थे - हड़प्पा और मोहनजोदड़ो। यहां वास्तुकला के श्रेष्ठ नमूने उपलब्ध हैं। अब आपके मन में यह प्र

लाक्षागृह का षड्यंत्र, लाक्षागृह क्या था, लाक्षागृह किसने बनवाया, Lakshagrih ka shadyantra,what was Lakshagrih

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  लाक्षागृह का षड्यंत्र, लाक्षागृह क्या था, लाक्षागृह किसने बनवाया, Lakshagrih ka shadyantra,what was Lakshagrih, महाभारत की कथाएं लाक्षागृह क्या था। लाक्षाग्रह किसने बनवाया ? पुरोचन कौन था ? ययाति कौन थे ? भीष्म के बचपन का नाम बताएं। राजा शांतनु ने किसका हाथ मांगा ? प्राचीन काल की बात है। भारत में ययाति नाम के राजा थे। उनकी दो रानियां थीं - देवयानी और शर्मिष्ठा। खांडवप्रस्थ उनकी राजधानी थी जो आगे चलकर इंद्रप्रस्थ कहलाया। पांडवों ने इसे बसाया था। शर्मिष्ठा के तीन पुत्र हुए। पुरू सबसे छोटे थे। ययाति ने पुरू को ही राजा बनाया। पुरू के नाम पर यह वंश ' पुरू वंश ' कहलाया। इसी पुरूवंश में राजा दुष्यंत हुए जो बहुत प्रतापी और प्रजा पालक थे। उनका विवाह शकुंतला नामक कन्या से हुआ। इन्हीं के पुत्र भरत के नाम पर अपने देश का नाम भारत पड़ा। आगे चलकर इसी वंश में हस्तिन नामक राजा हुए जिन्होंने हस्तिनापुर नामक राजधानी बसाई। कुरू के नाम पर यह वंश आगे चलकर कौरव कहलाए। इस तरह हम देखते हैं कि महाभारत की कथा कयी पीढ़ियों की कथाएं आपस में समेटे हुए है।  कौरव राज वंश में ही महाराज शांतनु हुए थे। उनका वि

अपनी खिचड़ी अलग पकाना मुहावरे का अर्थ, कहानी और वाक्य में प्रयोग, Apani khichri alag pakana muhaware ka arth, story, wakaya me pryog, make sentences with idioms and phrases ' apani khichri alag pakana.अपनी खिचड़ी अलग पकाना मुहावरे कैसे बने।

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  अपनी खिचड़ी अलग पकाना मुहावरे का अर्थ, कहानी और वाक्य में प्रयोग, Apani khichri alag pakana muhaware ka arth, story, wakaya me pryog, make sentences with idioms and phrases ' apani khichri alag pakana.अपनी खिचड़ी अलग पकाना मुहावरे कैसे बने। अपनी खिचड़ी अलग पकाना मुहावरे का अर्थ है सबसे अलग रहना।साथ न चलना। 1. अपनी खिचड़ी अलग पकाने वाले जीवन में सफल नहीं हो सकते। 2. यदि तुम मेरे साथ नहीं चल सकते तो जाओ अपनी खिचड़ी अलग पकाओ। 3. मुखिया जी ने दोनों भाइयों को कहा, देखो भाई, रोज - रोज लड़ने झगड़ने से अच्छा है कि अपनी खिचड़ी अलग पकाओ। 4. झंझट क्यों पाल रखे हो, अपनी खिचड़ी अलग पकाओ, लाभ में रहोगे। 5. रामपाल की बहुएं रोज आपस में लगती - झगड़ती रहतीं थीं। जिस दिन से अपनी खिचड़ी अलग पकाने लगी , उनका झगड़ना ही समाप्त हो गया। अपनी खिचड़ी अलग पकाना मुहावरे की कहानी, अपनी खिचड़ी अलग पकाना मुहावरा कैसे बना। रायगढ़ के एक गांव में चनारमल नाम का एक किसान रहता था। उसकी दो बेटियां थीं। दोनों का ब्याह अवतार नगर के सुजान मल के बेटे महनार से हुआ था। महनार अपनी दोनों पत्नियों को जान से भी ज्यादा प्यार करत

निर्धन छात्र कोष से सहायता हेतु प्राचार्य को आवेदन पत्र लिखें। Write an application to your principal to find help from poor boys fund. Nirdhan kshatra kosh se sahayata ke liye pracharya ko awedan patra.

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आम के आम और गुठलियों के दाम मुहावरे का अर्थ, कहानी    निर्धन छात्र कोष से सहायता हेतु प्राचार्य को आवेदन पत्र लिखें। Write an application to your principal to find help from poor boys fund. Nirdhan kshatra kosh se sahayata ke liye pracharya ko awedan patra. **"******"***************************""********* सेवा में,                 प्राचार्य महोदय,                अपने विद्यालय का नाम। द्वारा,             कक्षाचार्य महोदय। विषय - निर्धन छात्र कोष से सहायता हेतु। महाशय, निवेदन है कि मैं अपने विद्यालय में कक्षा ( अपनी कक्षा का नाम) का एक मेघावी छात्र हूं।  मेरे पिता जी एक छोटा व्यवसाय करते हैं। करोना महामारी के कारण उनका व्यवसाय बुरी तरह बर्बाद हो गया है। उनके सामने एक बड़े परिवार के पालन-पोषण की जिम्मेदारी है। ऐसे में अर्थाभाव के कारण मेरी पढ़ाई बाधित हो रही है और मैं आगे भी पढ़ना चाहता हूं। अतः श्रीमान जी से विनम्र निवेदन है कि उपरोक्त बातों पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करते हुए मुझे निर्धन छात्र कोष से सहायता प्रदान करने की कृपा करें।                              सधन्यवा